कुरुक्षेत्र : राइट टू एजुकेशन एक्ट 2009 को लागू हुए पांच साल बीत चुके हैं, इसके बावजूद शिक्षक गैर शैक्षणिक कार्य करने को मजबूर हैं। शिक्षकों ने बताया कि शिक्षा विभाग के महानिदेशक द्वारा अध्यापकों को बीएलओ ड्यूटी से तुरंत प्रभाव से मुक्त करने के आदेशों को भी आठ माह बीत चुके हैं।
इन आदेशों पर भी अमल न होता देख अध्यापकों ने स्वयं बीएलओ ड्यूटी छोडऩे का फैसला किया है। अध्यापकों ने थानेसर, पिहोवा, शाहाबाद के एसडीएम व एडीसी को नोटिस भेजकर भविष्य में बीएलओ ड्यूटी देने में असमर्थता जताई है। चारों निर्वाचन अधिकारियों को रजिस्टर्ड पोस्ट द्वारा यह नोटिस भेजे गए हैं।
मंगलवार को एसडीएम थानेसर के नाम 53 अध्यापकों ने बीएलओ ड्यूटी न करने की सूचना रजिस्टर्ड डाक से भेजी। पत्र में स्पष्ट कहा गया है कि शिक्षा विभाग के महानिदेशक के सितंबर में जारी पत्र के अनुसार अध्यापक बीएलओ ड्यूटी नहीं कर सकते। इसलिए वे अब और बीएलओ ड्यूटी नहीं करेंगे। नोटिस की प्रति चुनाव आयोग, राज्य निर्वाचन अधिकारी हरियाणा व जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी को भी भेजी गई है।
आंदोलन करने का बचा विकल्प
शिक्षकों ने कहा कि उनके पास आंदोलन करने व अदालत में जाने का विकल्प ही बचा है। पिछले एक महीने में शिक्षा जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी, जिला शिक्षा अधिकारी व एसडीएम थानेसर को ज्ञापन सौंप चुके हैं। इसके बाद भी विभाग की ओर से कोई जवाब नहीं आया, जिसके चलते उन्होंने खुद ड्यूटी छोडऩे का फैसला लिया है।
बीएलओ ड्यूटी का होगा बहिष्कार
हरियाणा अध्यापक संघ-70 के प्रदेशाध्यक्ष जवाहर लाल गोयल ने बताया कि 22 मई को इस बारे में एसडीएम थानेसर को ज्ञापन दिया गया था, जिसमें शिक्षकों ने साफ किया था कि वे किसी भी स्थिति में बीएलओ ड्यूटी नहीं देंगे। बीएलओ कार्य का पूर्ण बहिष्कार जारी रहेगा। राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष विनोद चौहान ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत अध्यापक कोई गैर शैक्षणिक कार्य नहीं कर सकते। इसी आधार पर निदेशक मौलिक शिक्षा ने एक अक्टूबर 2010 को पत्र जारी किया था, जिसमें लिखा था कि स्कूल के समय में अगर शिक्षक बीएलओ ड्यूटी करते मिले तो इसे सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना माना जाएगा। db
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