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Thursday, 14 August 2014

'रोहतकी पेंच' से फंसा एडिड स्कूलों का मामला

** अब समायोजन नहीं होगा, मुख्यमंत्री ने बीच का रास्ता निकालने को कहा 
अपने वादे से मुकरे मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा अब एडिड स्कूलों के स्टाफ को मनाना चाहते हैं। उन्होंने अफसरों को बीच का ऐसा रास्ता निकालने की हिदायत दी है, जिससे इन 204 स्कूलों के नियमित कर्मचारियों को सरकारी सेवा में समायोजन भी करना पड़ा और कर्मचारियों का आक्रोश भी खत्म हो जाए। 10 नवंबर को गोहाना रैली में हुड्डा ने एडिड स्कूलों को नियमित स्टाफ को सरकारी सेवा में समायोजित करने की घोषणा की थी लेकिन बाद में ऐसा करने से इंकार कर दिया। अब इन स्कूलों के कर्मचारी शिक्षा सदन के बाहर अनशन कर रहे हैं। 
मंगलवार को कैबिनेट की मीटिंग के बाद पहले शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल और बाद में मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने चंडीगढ़ में हरियाणा प्रांत अध्यापक संघ (अनुदान प्राप्त स्कूल) के प्रतिनिधिमंडल से बात की। संघ के नेताओं ने सीएम से गोहाना रैली का वादा पूरा करने की मांग की। हुड्डा ने साफ कह दिया कि एडिड स्कूलों का स्टाफ सरकारी स्कूलों में समायोजित नहीं होग, अलबत्ता उन्होंने सरकारी स्कूलों के कर्मचारियों की तरह मेडिकल भत्ता देने और ऐसी पॉलिसी बनाने की बात कही जिससे इस स्टाफ को पूरा वेतन मिल सके।
अंदर की बात
सरकार समायोजन पर राजी थी और इसी वजह से मुख्यमंत्री ने गोहाना में घोषणा भी कर दी। मगर रोहतक क्षेत्र के एक एडिड स्कूल संचालक कांग्रेसी नेता ने अड़ंगा अड़ा दिया। चर्चा है कि अनुदान के नाम पर उनके स्कूल को लाखों रुपए की सेलरी ग्रांट मिलती है और समायोजन होने पर यह ग्रांट बंद हो जाती। कुछ दिन पहले चंडीगढ़ में शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल के सामने ही एडिड स्कूलों के अध्यापक संघ ने इस स्कूल संचालक पर आरोप जड़े।
वादा तो किया है, अब नोटिफिकेशन पर नजर 
संघ के कोषाध्यक्ष हिसार के कृष्ण चंद्र कहते हैं कि सीएम ने अफसरों को मामले का हल निकालने को कहा तो है, लेकिन असल पता नोटिफिकेशन से ही चलेगा। यदि सरकार कॉलेजों की तर्ज पर 95 प्रतिशत सेलरी ग्रांट देती है, लेकिन स्कूल प्रबंधन का हस्तक्षेप रखती है तो इससे सिर्फ मैनेजमेंट को ही फायदा होगा, स्टाफ को नहीं। 
समायोजन या यूपी पैटर्न चाहता है एडिड स्कूल अध्यापक संघ 
हरियाणा प्रांत अध्यापक संघ (अनुदान प्राप्त स्कूल) के महासचिव रमेश बंसल कहते हैं कि या तो नियमित स्टाफ को सरकार टेकओवर करे या भी उत्तर प्रदेश का पैटर्न अपनाए, जहां एडिड स्कूलों के स्टाफ को खजाने (ट्रेजरी) से सेलरी मिलती है और स्कूल प्रबंधन समिति का हस्तक्षेप नहीं होता। इसके अलावा यदि सरकार कुछ और व्यवस्था करती है तो सिर्फ शिक्षकों को धोखा देने वाला कदम ही होगा। 
डीएड भी हो सकते हैं स्कूल : 
एक चर्चा यह भी है कि सरकार इन स्कूलों का अनुदान बंद करते डीएड (गैर अनुदानित) भी कर सकती है। क्योंकि इन स्कूलों में गैर स्वीकृत पदों पर लगे शिक्षकों ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर करे स्वीकृत पदों पर लगे शिक्षकों के बराबर वेतन मांगा है। इस पर 18 अगस्त को सुनवाई होनी है। ऐसे में सरकार अतिरिक्त भार से बचने के लिए अनुदान बंद करने का फैसला भी कर सकती है। प्रदेश के एडिड स्कूलों में करीब तीन लाख बच्चे पढ़ रहे हैं। 
समायोजन से दोनों को फायदा 
सरकार यदि एडिड स्कूलों के नियमित स्टाफ को टेकओवर करती है तो उसे 25 प्रतिशत खर्च में ही करीब 2200 शिक्षक और 550 गैर शिक्षक कर्मचारी मिल जाएंगे। शिक्षकों को भी प्रबंधन समितियों को शोषण से मुक्ति मिलेगी। ज्यादातर स्कूल प्रबंधन समिति सरकार को लिखकर दे चुकी हैं कि यदि सरकार नियमित स्टाफ को समायोजित कर ले तो वे स्कूलों का अनुदान समाप्त करने पर राजी हैं। 
समय पर नहीं मिलती पूरी सेलरी 
सरकार एडिड स्कूलों के नियमित स्टाफ के लिए 75 प्रतिशत सेलरी ग्रांट देती है, शेष 25 प्रतिशत स्कूल प्रबंधन समिति को अपने स्तर पर देनी पड़ती है। हालात ये हैं कि प्रदेश के 204 एडिड स्कूलों में से सिर्फ 25 की प्रबंधन समिति ही अपने हिस्से का 25 प्रतिशत वेतन देती है, शेष स्कूलों में पूरे वेतन पर हस्ताक्षर कराकर कम सेलरी दी जाती है। स्कूल प्रबंधन को पहले अपने स्तर पर वेतन देना पड़ता है अदायगी का बिल शिक्षा विभाग में जमा करवाकर ग्रांट मिलती है। इससे इन स्कूलों में कई-कई माह वेतन नहीं मिलता। 
कानूनी अड़चनों का हल ढूंढ रहे : भुक्कल 
"सरकार एडिड स्कूलों के नियमित स्टाफ की समस्या का हल ढूंढ रही है। सरकारी सेवा में समायोजन को लेकर कुछ तकनीकी कानूनी अड़चनें हैं। कुछ बीच का रास्ता निकालने की कोशिश चल रही है।"--गीता भुक्कल, शिक्षामंत्री                                    dbpnpt

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