दिन बीतने के साथ ही अतिथि अध्यापकों की उम्मीद और दम तोड़ती दिखाई दे रही है। सरकार द्वारा सरप्लस घोषित 4073 गेस्ट टीचर को हटाने के नोटिस पर हाई कोर्ट की एकल बेंच ने रोक लगाने से इनकार कर दिया। सरकार ने मंत्रिसमूह की बैठक में आश्वासन दिया था कि वह आदेश पर स्टे दिलवाने में अतिथि अध्यापकों की मदद करेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कोर्ट ने सरकार व अध्यापकों को कड़ी फटकार लगाते हुए स्पष्ट कहा कि केवल समय बर्बाद किया जा रहा है। अब सरकार को अदालत द्वारा दी गई दो सप्ताह की अवधि भी पूरी हो गई और हाई कोर्ट में बुधवार को उसे स्टेटस रिपोर्ट पेश करनी है कि अतिथि अध्यापकों को हटाने के लिए क्या कदम उठाए गए? तमाम परिस्थितियां बेहद पीड़ादायक या उससे भी आगे जाकर कहें तो यातनापूर्ण बन चुकी। अतार्किक नीति और निर्णय की हजारों को सजा भुगतनी पड़ रही है। सरकार के दावों और आश्वासनों में संदेह की बू आने लगी है। केवल गेस्ट अध्यापक ही नहीं, लैब सहायकों, कंप्यूटर शिक्षकों और जेबीटी के बारे में लिए गए निर्णयों या दिए गए आश्वासनों में भी ऐसी ही दरुगध को सहज महसूस किया जा सकता है। सरकार यह स्वीकार क्यों नहीं कर रही कि उसकी कार्यशैली पारदर्शी नहीं। दिन में गेस्ट टीचरों को बीच-बचाव का रास्ता अपनाने का भरोसा दिलाया गया, रात होते-होते 24 घंटे में नौकरी छोड़ने का नोटिस थमा दिया गया, फिर मंत्रिसमूह की बैठक हुई जिसमें एक बार और आश्वासन दिया कि अतिथि अध्यापक अभी स्कूलों में बने रहेंगे, मंत्रियों की ओर से कहा गया कि नौवीं, दसवीं की कक्षाओं को वे पढ़ाते रहेंगे। कई बार कहा जा चुका कि टीजीटी को पीजीटी बना कर गेस्ट टीचरों को एडजस्ट किया जाएगा। 24 घंटे के नोटिस पर स्टे दिलवाने में पूरी मदद का आश्वासन दिया गया लेकिन अदालत के फैसले से कुछ और ही तस्वीर उभर कर सामने आ रही है। पूरे घटनाक्रम को देखें तो एक बात स्पष्ट हो रही है कि सरकार की किसी एक राय का दूसरी से कोई सरोकार नहीं। कई बार तो उसकी एक बात दूसरी को काटती नजर आती है। यह प्रवृत्ति सरकार की विश्वसनीयता और छवि को आघात पहुंचा रही है। गेस्ट टीचरों के साथ बार-बार वादाखिलाफी सामाजिक व शैक्षिक ढांचे में बिखराव का कारण बन सकती है। उनके समायोजन के लिए हर विकल्प तैयार रहना चाहिए। शिक्षा क्षेत्र में हाहाकार रोका जाए। dj
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