भिवानी : शिक्षा बोर्ड के परीक्षा परिणामों ने प्रदेशवासियों को आईना दिखा दिया है। इसको लेकर किसी एक पक्ष को दोषी करार नहीं दिया जा सकता है, बल्कि शिक्षा नीति से लेकर सरकारी स्कूलों की व्यवस्था, शिक्षकों का योगदान व शिक्षा बोर्ड की नीति सभी शामिल हैं। पिछली कांग्रेस सरकार ने आरटीइ लागू कर सभी को शिक्षा का अधिकार दिया था। इसी के चलते आठवीं कक्षा तक फेल करने के सिस्टम को समाप्त कर दिया गया। इन हालात में नौवीं कक्षा तक बच्चे बगैर पढ़े ही पास हो रहे हैं तो दसवीं कक्षा में बोर्ड की परीक्षा उन पर बड़ी बाधा बन जाती है और फेल होने का प्रतिशत पास होने वालों से कई गुणा ज्यादा होने लगा। शिक्षा का गिरता स्तर उजागर न हो, इसके लिए मॉडरेशन नाम की पॉलिसी ईजाद कर ली गई। नई सरकार ने मॉडरेशन को तो समाप्त कर दिया है पर अभी भी चुनौतियों से पार पाना आसान नहीं है।
शिक्षा सुधार के नाम पर पिछले कई वर्षो के दौरान हरियाणा में कई प्रयोग किए गए। एजूसेट व डीटीएच सिस्टम लागू किए गए। शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए विकल्प के रूप में अरबों रुपये खर्च कर चलाई गई ये योजनाएं लंबी नहीं चली। 2006 में गेस्ट टीचर लगाए गए। मिड-डे मील शुरू कर सरकारी स्कूलों में बच्चों का रुझान बढ़ाने का प्रयास किया गया, ताकि ड्रापआउट की स्थिति काबू की जा सके।
परीक्षाओं में गुजरता समय
पिछली सरकार ने शिक्षा में सुधार लाने के लिए सेमेस्टर सिस्टम लागू किया, ताकि हर छह माह में परीक्षा होगी तो बच्चों को पढ़ने व पढ़ाने का माहौल भी बनेगा। हुआ इसके विपरीत। वर्ष में अधिकांश समय तो परीक्षाओं में गुजरने लगा। बोर्ड कई बार सेमेस्टर सिस्टम हटाने पर विचार कर चुका है। dj
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