कुरुक्षेत्र : प्रदेश सरकार की ओर से अनुसूचित जाति को पदोन्नति में आरक्षण की अधिसूचना आखिर सरकार ने जारी कर दी। प्रदेश सरकार की ओर से किए गए इस फैसले के साथ ही प्रदेश भर के सामान्य श्रेणी कर्मियों की भौहें भी तन गई। 15 मई को जारी अधिसूचना के आते ही कर्मियों ने फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में जाने की तैयारी शुरू कर दी है। इससे पहले ही कुवि कर्मियों की एक कमेटी इस मामले पर नजर रखे हुए है।
पिछले कई सालों से प्रदेश में अनुसूचित जाति कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का मुद्दा राजनीतिक असर का मामला रहा है। प्रदेश के कार्यालयों में कार्य करने वाले अनुसूचित जाति के कर्मचारी इसे अपना हक मानते हैं और प्रदेश सरकार से मांग करते हैं कि उन्हें पदोन्नति में आरक्षण प्रदान किया जाए। वहीं दूसरी ओर सामान्य श्रेणी और पिछड़ा वर्ग से आने वाले कर्मचारियों का कहना है कि आरक्षण का हक केवल एक बार है और पदोन्नति विभाग के तय नियमों के अनुसार ही होनी चाहिए।
इससे कई बाद में आए और अयोग्य कर्मचारी उपर के पायदान पर पहुंच जाते हैं। जिससे कार्यालयों का कार्य प्रभावित भी होता है और सामान्य श्रेणी कर्मियों का हक भी मारा जाता है। प्रदेश सरकार ने इसी तरह का फैसला करते हुए 30 जनवरी को हुई केबिनेट की बैठक में पदोन्नति में आरक्षण का फैसला लिया था। जिसके अनुसार अनुसूचित जाति के कर्मचारियों को पदोन्नति में भी 20 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। वैसे तो प्रदेश सरकार यह फैसला 30 जनवरी को ही कर चुकी थी, लेकिन न्यायालय और सामान्य श्रेणी कर्मियों के विरोध के चलते और प्रदेश सरकार ने कानूनी चक्कर में पड़ने से बचने के लिए अधिसूचना जारी करने में ही तीन माह से अधिक का समय लगा दिया। सरकार ने 15 मई को अधिसूचना जारी की।
अधिसूचना में जल्द ही इसे लागू करने की हिदायत भी जारी की। कुवि के पूर्व सहायक कुलसचिव देवेंद्र सचदेवा ने बताया कि कर्मचारी इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय तक लंबी लड़ाई लड़ चुके हैं। उन्होंने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर आरक्षण को रोका था। dj
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