पानीपत : बिना पढ़े लिखे बच्चों को पास कर देने की नीति के परिणाम अब सामाने आने लगे हैं। मॉडरेशन न मिलने से फेल का ग्राफ इस बार सबसे ज्यादा है। सरकार से मोटी पगार हासिल करने वाले गुरुजी परिणाम में गिरावट के लिए शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई) को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सरकारी स्कूलों में शिक्षण के हालात दिन प्रतिदिन बदतर होते जा रहे हैं। वर्ष 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम हरियाणा प्रदेश में लागू किया गया। अधिनियम में इस बात का उल्लेख है कि पहली से आठवीं तक किसी बच्चे को कक्षा में रोका नहीं जाएगा। अधिनियम की आड़ में बच्चों को डांट फटकार लगाने से परहेज कर गुरुजी ट्यूशन व मुनाफे के अन्य निजी कार्यो पर ज्यादा ध्यान देने लगे। शिक्षा निदेशालय में पदस्थ वरिष्ठ अधिकारी भी कमजोर होती बुनियाद को मजबूत करने की कोई ठोस पहल नहीं की। दसवीं में बोर्ड का औसत परिणाम 41.28 फीसद से भी कई स्कूल पिछड़ गए। पानीपत के कई सरकारी स्कूलों में 10-15 फीसद बच्चे भी उत्तीर्ण नहीं हुए।
मूल्यांकन ने किया बंटाधार
सरकारी शिक्षा को निजी स्कूलों से बेहतर बनाने के लिए सिलेबस अपडेट किए जाते हैं। राज्य शैक्षणिक व अनुसंधान परिषद की इसमें महत्ती भूमिका होती है। सिलेबस अपडेट किए जाने के बाद गुरुजी जैसे तैसे कक्षा में इसे पूरा करवा देते। बच्चों ने क्या सीखा इससे उनका ज्यादा मतलब नहीं होता है। शिक्षण कार्य का वास्तविक मूल्यांकन करने के लिए कोई खास पद्धति ईजाद नहीं किया गया। dj
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