** विधानसभा में लाया गया अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार संशोधन विधेयक
नई दिल्ली: आठवीं कक्षा तक विद्यार्थियों को फेल न करने की नीति बदलने के
लिए दिल्ली सरकार ने शुक्रवार को विधानसभा में विधेयक पेश किया। नि:शुल्क व
अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार संशोधन विधेयक (दिल्ली क्षेत्र में) को पेश
करते हुए उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि वर्तमान में लागू
अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार में कई खामियां हैं। आठवीं कक्षा तक
विद्यार्थियों को फेल नहीं करने की नीति विद्यार्थी, शिक्षक व अभिभावक किसी
के हित में नहीं है। इसलिए इसमें संशोधन की आवश्यकता सरकार ने महसूस की।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार के तहत जो
पॉलिसी बनाई और राज्य सरकारों ने जिसे लागू किया, वहीं दिल्ली में भी लागू
है, लेकिन इसके नतीजे बेहतर नहीं हैं। उन्होंने आंकड़े पेश करते हुए कहा कि
वर्ष 2011-12 में छठी कक्षा के 14 फीसद विद्यार्थी पास होने में नाकाम हुए
थे, वहीं 2012-13 तथा 2013-14 में बढ़कर यह आंकड़ा 18 व 25 फीसद तक पहुंच
गया। इसी तरह सातवीं कक्षा में 14, 16 और 24 फीसद तक क्रमश: बढ़ गया। आठवीं
कक्षा में 12, 13 तथा 21 फीसद तक छात्र नाकाम रहे। चूंकि उन्हें फेल नहीं
किया जा सकता, इसलिए वे अगली कक्षा में प्रवेश पाते गए। सिसोदिया ने कहा कि
यह सिस्टम किसी भी सूरत में विद्यार्थियों के हित में नहीं है। बाल शिक्षा
अधिकार को लागू करने से पहले जो तैयारियां होनी चाहिए थीं, वे नहीं की गईं
और इसे लागू कर दिया गया। स्कूलों में शिक्षक व विद्यार्थियों का अनुपात
ठीक नहीं है और सरकार ने फेल नहीं करने के नोबल आइडिया को लागू कर दिया।
इसलिए दिल्ली सरकार नि:शुल्क व अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार को संशोधन के
साथ सदन में पेश कर रही है। उन्होंने सदन को बताया कि शिक्षकों को बेहतर
प्रशिक्षण देने के लिए टीचर टेनिंग यूनिवर्सिटी भी खोलने पर सरकार विचार कर
रही है।
"आठवीं कक्षा तक विद्यार्थियों को फेल नहीं करने के प्रावधान का ही
नतीजा है कि पढ़ाई को छात्र व शिक्षक गंभीरता से नहीं लेते। नौवीं कक्षा
में जब अचानक पढ़ाई का बोझ बढ़ता है तो उन पर मानों मुसीबत का पहाड़ टूट
पड़ता है।"-- मनीष सिसोदिया, उप मुख्यमंत्री dj
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