** अवकाश नहीं देने के
आदेश
** सर्व कर्मचारी संघ ने कहा, दमन बर्दाश्त नहीं करेंगे
** सरकार बात करे
अन्यथा भुगतने को तैयार रहे
चंडीगढ़ : एक साल के कार्यकाल में कर्मचारियों से किया गया एक भी वादा पूरा
नहीं कर पाई हरियाणा सरकार ने कर्मचारियों के धरना-प्रदर्शन और हड़ताल
करने पर रोक लगा दी है। राज्य के करीब पौने तीन लाख कर्मचारियों ने 25
नवंबर को सीएम सिटी करनाल में राज्य स्तरीय रैली का एलान किया है। रैली से
चार दिन पहले सरकार ने सभी प्रशासनिक सचिवों और विभागाध्यक्षों को परिपत्र
जारी कर कर्मचारियों के सामूहिक आकस्मिक अवकाश के आवेदनों पर गौर नहीं करने
की हिदायतें जारी की हैं।
राज्य के सबसे बड़े कर्मचारी संगठन सर्व
कर्मचारी संघ ने 25 नवंबर को करनाल में गर्जना रैली का एलान किया है। इस
दिन कर्मचारी सरकार को उसके चुनाव घोषणा पत्र की याद कराते हुए समस्याओं का
समाधान चाहते हैं। कर्मचारी पंजाब के समान वेतनमान लागू करने, वेतन
विसंगतियां दूर करने, वादे के अनुरूप कच्चे कर्मचारियों को नियमित करने,
ठेका प्रथा खत्म करने और समान काम के लिए एक समान वेतन दिए जाने समेत करीब
दो दर्जन मांगों के लिए आंदोलन कर रहे हैं। संघ की करीब एक दर्जन टोलियां
विभिन्न जिलों में जाकर कर्मचारियों को 25 नवंबर की करनाल रैली का निमंत्रण
दे रही हैं। 26 नवंबर को सरकार को एक साल एक माह पूरा हो जाएगा। उसके बाद
विधानसभा सत्र है, जिसमें विपक्ष द्वारा कर्मचारियों के मुद्दे जोरदार ढंग
से उठाए जाने की संभावना है। लिहाजा प्रदेश सरकार ने पहले ही कर्मचारियों
पर नकेल डालने की कोशिश को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है।
सामान्य
प्रशासन विभाग द्वारा सभी प्रशासनिक सचिवों, विभागाध्यक्षों,
मण्डलायुक्तों, उपायुक्तों, बोर्ड व निगमों के प्रबंध निदेशकों व मुख्य
कार्यकारी अधिकारियों तथा विश्वविद्यालय के कुल सचिवों को जारी परिपत्र में
कहा गया है कि वे कर्मचारियों के सामूहिक आकस्मिक अवकाश स्वीकृत न करें।
परिपत्र के अनुसार राज्य सरकार विभिन्न कर्मचारी संघों व एसोसिएशन से
प्राप्त होने वाली जायज मांगों का समय-समय पर हमेशा निपटान करती रहती है।
सवोर्ंच्च न्यायालय ने भी हड़ताल पर जाने को कर्मचारियों के निर्धारित आचरण
नियमों के अंतर्गत गलत बताया है तथा ऐसा करने वाले कर्मचारियों के साथ
नियमों के तहत निपटे जाने की आवश्यकता है। परिपत्र में सरकारी आचरण (नियम)
1966 के नियम 7 व 9 के प्रावधानों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि किसी
कर्मचारी को हड़ताल में भाग लेने का कोई अधिकार नहीं है। कर्मचारी यूनियन
या एसोसिएशन का गठन हड़ताल पर जाने का अधिकार की गारंटी नहीं है।
दूसरी तरफ
सर्व कर्मचारी संघ के महासचिव सुभाष लांबा ने इस फैसले को सरकार की
हड़बड़ाहट करार दिया है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने सत्ता में आने से पहले
कर्मचारियों से जो वादे किए थे, उनमें से एक भी पूरा नहीं किया गया है।
मुख्यमंत्री के पास कर्मचारी नेताओं की बात सुनने का समय नहीं है। उनसे
मिलने का कई बार समय मांगा गया है, लेकिन वह बात करने को तैयार नहीं होते।
अभी तक कई आंदोलन हो चुके और सरकार के पास इन आंदोलनों का कोई जवाब नहीं
है। लिहाजा सरकार आंदोलनों को दबाने के लिए आपातकाल के हालात पैदा करना चाह
रही है।
संघ के महासचिव ने कहा कि 13 अक्टूबर को रविवार था और शिक्षकों को
करनाल में आंदोलन करना था, लेकिन इस दिन शिक्षा नीति पर चर्चा करने की बात
कहकर अवकाश रद करने का ऐलान कर दिया गया, ताकि शिक्षक आंदोलन न कर सकें।
दरअसल, ट्रांसपोर्ट पालिसी में रोडवेज का निजीकरण करने की तैयारी कर ली गई
है। शिक्षा नीति में बदलाव किए जा रहे हैं। कर्मचारियों के छठे वेतन आयोग
की विसंगतियां अभी तक दूर नहीं की जा सकी हैं। हर वादे पर सरकार फेल है।
ऐसे में उसके बाद दमन करने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है और कर्मचारी
इसका जवाब देने को तैयार हैं। सुभाष लांबा ने कहा कि हमें टकराव में मजा
नहीं आता। हम टेबल पर बैठ कर बात करना चाहते हैं, लेकिन सरकार इसकी पहल तो
करे। अगर सरकार बातचीत नहीं करेगी तो 25 नवंबर के आंदोलन में कोई बदलाव
नहीं होगा। dj
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