नई दिल्ली : केंद्र की देखा देखी लोकलुभावन घोषणा कर वेतन आयोग गठित करने वाले राज्यों को सातवें वेतन आयोग ने जरूरी सलाह दी है। सातवें वेतन आयोग का कहना है कि राज्य अपने खजाने की स्थिति देखकर ही कर्मचारियों का वेतन बढ़ाएं। आयोग का कहना है कि जिन राज्यों की वित्तीय स्थिति बीते वर्षो में अच्छी नहीं रही है वे अपने यहां वेतन आयोग गठित करने के साथ-साथ जरूरी राजकोषीय सुधार भी करें। जस्टिस एके माथुर की अध्यक्षता वाले सातवें वेतन आयोग ने केंद्रीय कर्मियों के वेतन, भत्ते और पेंशन में 23.55 प्रतिशत वृद्धि की सिफारिश की है। इससे केंद्र के खजाने पर 1,02,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ने का अनुमान है। सातवें वेतन आयोग ने सिफारिशों के राज्यों पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण भी किया है। आयोग का कहना है कि जिन राज्यों की राजकोषीय स्थिति मजबूत है उन पर इसका अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। हालांकि, कई ऐसे राज्य हैं जिनके खजाने पर बीते वर्षो में दवाब रहा है। इसलिए उनके लिए इन सिफारिशों पर अमल करना कठिन होगा। इस तरह के सामान्य श्रेणी के राज्यों को तत्काल ही राजकोषीय सुधार करने की जरूरत है। राजकोषीय सुधारों के तहत ऐसे राज्यों को अवांछित व्यय में कटौती करनी होगी। साथ ही राजस्व बढ़ाने वाले उपाय भी करने होंगे। फिलहाल करीब आधा दर्जन राज्य हैं, जिनकी राजकोषीय स्थिति सामान्य या उससे भी कमजोर है। इनमें सबसे ऊपर पश्चिम बंगाल, केरल और पंजाब हैं। चौदहवें वित्त आयोग ने इन राज्यों को राजस्व अनुदान भी दिया है। बिहार की स्थिति भी खास बेहतर नहीं है। चालू वित्त वर्ष में बिहार का राजस्व घाटा 2.6 प्रतिशत, हरियाणा का 1.8, पंजाब का 1.6 और केरल का 1.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है। प. बंगाल का राजस्व घाटा शून्य रहने का अनुमान है। हालांकि, बीते आठ साल पश्चिम बंगाल का राजस्व घाटा 1.3 प्रतिशत से 5.4 प्रतिशत के बीच रहा है। आयोग का कहना है कि केंद्र ने 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें लागू कर केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर दी है। dj
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