प्रदेश में सावन माह में तबादलों की बहार आई है। नई
तबादला नीति ने शिक्षकों के पहले से पसीने छुड़ा रखे थे। अब उन शिक्षकों की
राह कठिन होने जा रही है जो बरसों से एक ही जगह जमे थे। गिरते परीक्षा
परिणाम व शिक्षण संस्थानों में राजनीतिक दखल की चर्चाओं के कारण शिक्षा
व्यवस्था पर ही सवाल उठने लगे थे। शिक्षकों के तबादले राजनीति की बड़ी वजह
माने जाते थे। साथ ही कुछ जगह शिक्षकों के दूसरे धंधों में जुटे होने की
खबरें आम हो रही थी। सरकार का प्रयास राजनीति के गठजोड़ को तोड़ने का है।
ऑनलाइन तबादला आदेशों में न कोई पर्ची काम आई और न ही कोई सिफारिश। ऑनलाइन
ही शिक्षकों से विकल्प मांगे गए और ऑनलाइन ही पड़ताल हुई। अब ऑनलाइन ही
तबादला आदेश जारी किए जा रहे हैं। इस प्रक्रिया में किसी का प्रभाव नहीं
चलेगा, ऐसी उम्मीद है। राजनीतिक दखल पर रोक लगेगी।
शिक्षकों की तबादला
नीति को लेकर कुछ आशंकाएं थी। कुछ संगठन भी खिलाफ थे पर सरकार इस पर अड़ी
रही। एक साथ प्रदेश में इतने तबादले पूरी व्यवस्था को ङिांझोड़ देंगे। पहले
कदम में पीजीटी के तबादले किए जा रहे हैं। अगले चरण में टीजीटी व जेबीटी
के तबादले होंगे। यूं कहें कि आने वाले दिन हंगामेदार होने वाले हैं। बदलाव
व तबादले नियमित प्रक्रिया का हिस्सा है। मगर शिक्षण सत्र के चार माह बाद
व्यापक स्तर पर तबादले पूरी व्यवस्था को प्रभावित भी कर सकते हैं। निश्चित
तौर यह कवायद सत्र के आरंभ से पूर्व ही पूरी कर ली जानी चाहिए थी।
ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद से तबादलों पर बहस जारी है। स्कूलों में शिक्षक
तबादलों के इंतजार में थे और ऐसे में शिक्षण कार्य प्रभावित हुआ। सरकार का
तर्क है कि जांच पड़ताल व उन्हें सूचीबद्ध करने में काफी समय लग गया। अब
सरकार शिक्षक संगठनों से भी बात कर सूचियों की मैनुअल जांच करेगी ताकि
गड़बड़ की आशंका को कम किया जा सके। इसके बाद सरकार के पास ऑनलाइन डाटा
उपलब्ध रहेगा, जिसके आधार पर यह पता लगाया जा सकेगा कि कहां कितने पद रिक्त
हैं। अगर ये तबादले स्कूलों से राजनीति हस्तक्षेप को दूर करने में सफल हो
गए तो उम्मीद कर सकते हैं कि पूरी कसरत सफल रही। नई नियुक्तियों के लिए
तैयारी एडवांस में की जा सकेगी। उम्मीद है शिक्षण संस्थानों के माहौल में
सुधार हो पाएगा। dj
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