सर्वशिक्षा अभियान के तहत बच्चों को किताबें समय पर इसलिए नहीं मिल पाईं क्योंकि इस मामले में हर स्तर पर लापरवाही बरती गई। बच्चों का भविष्य बर्बादी के कगार पर है। सरकार अफसरों पर कार्रवाई करने के बजाय प्रकाशकों को ही जिम्मेदार ठहरा रही है। इस काम के लिए जिम्मेदार अफसर भी अब बगले झांक रहे हैं और तरह-तरह के बहाने गढ़ रहे हैं।
शिक्षा विभाग के अनुसार शिक्षा बोर्ड और संबंधित अफसर किताबों को लेकर लापरवाह रहे। हालत यह रही कि हाई पावर परचेज कमेटी ने भी टेंडर फाइनल करके अपना काम खत्म कर लिया। किसी ने भी यह प्रयास नहीं किया कि प्रकाशक से किताबें समय पर प्राप्त की जाएं। अब शिक्षा विभाग के पास यह बहाना है कि अफसरों के जल्दी-जल्दी ट्रांसफर होने से यह काम बिगड़ा। जबकि संबंधित अफसरों को या तो इस मामले की जानकारी नहीं है, अथवा वे हाल ही ज्वाइन करने की बात कहकर बचने की कोशिश कर रहे हैं।
शिक्षा मंत्री का आश्वासन
शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल की भी इस मामले में लापरवाही रही। वे पहले तो भरोसा दिलाती रहीं कि बच्चों को किताबें समय पर मिलेंगी। फिर उन्होंने कहा कि किताबें बंटनी शुरू हो गई हैं। जबकि उन्हें पता था कि कंपनी समय पर इतनी बड़ी संख्या में किताबों की सप्लाई नहीं कर पाएगी। जब कंपनी ने हाथ खड़े कर दिए तो मजबूरन कंपनी का टेंडर कैंसिल किया गया। अब शिक्षा मंत्री कहती हैं कि कक्षा 1,2 और 9-10वीं की किताबें बंट गई हैं। शार्ट टर्म टेंडर किए हैं जल्दी किताबें वितरित करवाएंगे। अफसरों पर कार्रवाई के सवाल पर वे कहती हैं कि पहली प्राथमिकता किताबें बंटवाना है।
सीएम ने नहीं दिया जवाब
राज्य के मुख्यमंत्री होने के नाते उन्हें बच्चों को समय पर किताबें बंटवाने के मामले की समय-समय पर जानकारी लेनी चाहिए थी। शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल के अनुसार उनके विभाग में इस काम से जुड़े सभी अफसरों को बदल दिया गया। इससे भी इस काम में देरी हुई। इस बारे में मुख्यमंत्री हुड्डा ने स्वीकार किया कि यह सही है, किताबें बंटने में देरी हुई है। हम इस मामले में कार्रवाई कर रहे हैं। परंतु देरी के लिए जिम्मेदार कौन हैं और किन अफसरों पर कार्रवाई हो रही है। इस सवाल को वे टाल गए।
हाईपावर कमेटी: किताबों की छपाई के लिए टेंडर फाइनल करने की जिम्मेदारी इसी पर थी।
ब्लैक लिस्टेड कंपनी को ठेका :
पिछले साल अक्टूबर में मुंबई की जिस कंपनी को किताब छापने का ठेका दिया था, वह ब्लैक लिस्टेड थी। कमेटी ने इसकी अनदेखी की।
अब क्या कहते हैं अफसर:
बोर्ड के तत्कालीन सचिव डीके बेहरा, जो कि आज कल नारनौल (महेंद्रगढ़) के डीसी हैं, का कहना है कि उनकी जिम्मेदारी टेंडर काल करने तक ही थी। अंतिम निर्णय तो हाईपावर परचेज कमेटी को करना था। जिस कंपनी को ठेका दिया गया, उसके रेट सबसे कम थे। यह सही है कि कंपनी झारखंड में भी किताब समय पर नहीं पहुंचा पाई थी।
कमेटी के अध्यक्ष हरमोहिंदर चट्ठा को कुछ पता ही नहीं
अध्यक्ष बोले मुझे नहीं पता: हाईपावर परचेज कमेटी के अध्यक्ष वित्त मंत्री हरमोहिंदर सिंह चट्ठा हैं। भास्कर ने जब उनसे किताबों में देरी की वजह जानने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि इस बारे मुझे कुछ नहीं पता। ..DB
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