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Saturday, 18 January 2014

दावा शिक्षा हब का, कक्षाएं जमीन पर

** कड़ाके की ठंड में खुले में पढ़ने को मजबूर छात्र, नए भवन के लिए जगह नहीं 
कुरुक्षेत्र : भले ही प्रदेश के मुख्यमंत्री दिल्ली में आयोजित मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में प्रदेश को शिक्षा का हब बनाने का दावा ठोकते हों, लेकिन असलियत ठीक इससे उलट है। शिक्षा विभाग प्रदेश को शिक्षा का हब बनना तो दूर विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त कराने के लिए मूलभूत सुविधाएं भी नहीं दे पाया है। यह हाल सुदूर गांव का नहीं बल्कि जिला मुख्यालय में चल रहे उच्च विद्यालय का है। यहां कमरों की कमी के कारण इतनी ठंड में सैकड़ों बच्चों को खुले आसमान में नीचे बैठ कर पढ़ना पड़ रहा है। जबकि शिक्षा अधिकारी जमीन न होने का रोना रो रहे हैं। 
शहर के सबसे व्यस्ततम माने जाने वाले रेलवे रोड कॉलोनी में स्थित नाथ मंदिर कन्या उच्च विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों की कमी नहीं है। स्कूल में इस समय दो शिफ्ट में कक्षाएं आयोजित की जाती हैं और पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या भी लगभग सात सौ है। जबकि बच्चों के बैठने के लिए क्लास रूम है केवल छह। 
विद्यालय में छठी से दसवीं तक की कक्षाएं सुबह के समय लगती हैं। इसमें विद्यार्थियों की संख्या 405 हैं और इसी तरह प्राथमिक विद्यालय में 285 विद्यार्थी हैं। लड़कियों और लड़कियों के सेक्शन बनाने पर कुल दस कक्षाएं हैं। ऐसे में इन विद्यार्थियों को बैठने के लिए कम से कम दस कमरों की आवश्यकता है। जबकि स्कूल में केवल छह कमरे हैं। ऐसे में सीधा अर्थ है कि एक समय में केवल छह कक्षाओं को ही पढ़ने के लिए कमरे उपलब्ध हो सकते हैं। यानि अन्य बची चार कक्षाएं या तो बाहर बैठकर पढ़े या फिर स्कूल में ही न आएं। स्कूल में बरामदा भी इतना बड़ा नहीं है कि विद्यार्थियों को बैठना तो दूर खड़ा भी किया जा सके। 
बरसात में नहीं लगती कक्षाएं 
विद्यार्थियों ने नाम छापने की शर्त पर बताया कि ठंड में तो विद्यार्थियों को बाहर बैठा दिया जाता है, लेकिन बरसात के दिनों में स्थिति और भी खराब हो जाती है। बच्चों को कई बार बरसात के मौसम में छुट्टी करनी पड़ती है। अगर छुट्टी न करें तो विद्यार्थी खड़े होकर या फिर एक ही कमरे में दो कक्षाएं लगाकर काम चलाया जाता है। 
प्रार्थना के लिए जगह नहीं पर्याप्त 
स्कूल का कुल क्षेत्रफल ही लगभग 500 गज है। ऐसे में भवन बनाने के बाद बीच में इतनी जगह भी नहीं है कि विद्यार्थियों को सुबह प्रार्थना के लिए उचित दूरी पर खड़ा किया जा सके। भवन के बीच में मुश्किल से दो सौ बच्चों के खड़ा होने की जगह है। ऐसे में बच्चे शिक्षा तो दूर भगवान का नाम भी सही ढंग से नहीं ले पाते।                                dj

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