भिवानी : उन्होंने तो भर्ती की सारी औपचारिकताएं पूरी की हैं, उनकी कोई गलती नहीं है। एक दशक हो गया बच्चों का भविष्य बनाते-बनाते, लेकिन अब तो उनका खुद का ही भविष्य अंधेरे में डूब गया है। पंजाब एवं हरियाणा कोर्ट द्वारा वर्ष 2000 में हुई 3206 जेबीटी अध्यापकों की भर्ती को रद्द करने के फैसले से आहत जेबीटी अध्यापकों का यह दर्द है। पीड़ित अध्यापकों ने कहा कि अब उनकी उम्र भी 45 पार हो गई है। किसी तरह बच्चों का लालन पालन कर रहे हैं नौकरी गई तो वे अपने परिवार को कैसे पालेंगे। अब तो हरियाणा सरकार ही उनकी पैरवी करे। जब से टीवी पर सरकार के इस फैसले के बारे में पता चला है उनके घर तो चूल्हा भी नहीं जला। कोर्ट ने जेबीटी भर्ती में धांधली की वजह से यह फैसला लिया है।
गांव मंदोली निवासी मुकेश ने बताया कि अब उसके पति भी नहीं रहे। नौकरी गई तो बच्चे की परवरिश कैसे हो पाएगी। अब मेरे सिर पर ही परिवार की जिम्मेदारी है। दूसरी नौकरी पाने की उम्र भी नहीं रही। भगवान जाने अब उनके साथ क्या होगा। सरकार ही उनकी सुध ले। विकलांग अध्यापक कमल सिंह ने कहा कि किसी तरह जेबीटी अध्यापक की नौकरी मिली थी।
जेबीटी अध्यापक सोमबीर सिंह ने कहा कि छह-छह बहनों का भार उन्हीं पर है। उनकी शादी करने के अलावा परिवार का सारा बोझ उनके ही सिर पर है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद उनके घर तो चूल्हा तक नहीं जला है। सब चिंता में हैं कि अब क्या होगा। कैसे होगा परिवार का गुजारा।
जेबीटी अध्यापक रमेश अटेला, राजपाल, लीलाराम, रमेश कुमार, ओमवीर सिंह, संजय कुमार और कृष्ण कुमार आदि जेबीटी अध्यापकों ने बताया कि उनको वर्ष 2000 में जेबीटी अध्यापक के पद पर नौकरी मिली थी। नार्म्स के अनुसार भी 10 साल की नौकरी के बाद उनको कन्फर्म किया जाना चाहिए था, लेकिन उनका मामला अदालत में होने के कारण कन्फर्म नहीं हो पाए।
हरियाणा अध्यापक संघ के राज्य कोषाध्यक्ष एवं हरियाणा कर्मचारी महासंघ के जिला प्रधान जेबीटी अध्यापक संजीव मंदोला ने कहा कि वर्ष 2000 में जो जेबीटी अध्यापक लगे थे उन्होंने सभी औपचारिकताएं पूरी की हैं। सरकार ही उनकी पैरवी करे और उनकी नौकरी बरकरार रखने के लिए ठोस कदम उठाए। au
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