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Thursday, 2 January 2014

गुरुओं की दरकार, न शिक्षा, न अधिकार


हिसार : प्रदेश सरकार करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी सरकारी स्कूलों में शैक्षणिक व्यवस्था बहाल करने में नाकाम रही है। स्कूलों में हजारों की संख्या में शिक्षकों के पद रिक्त पड़े हैं। जो शिक्षक कार्यरत हैं वे मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं। बाकी बचे कुछ खुद की नौकरी बचाने की जुगत में लगे हैं। इस बीच हिसार की छह प्राथमिक पाठशालाओं में बच्चों की संख्या दस से कम होने के कारण स्कूलों को बंद करना पड़ा।
हाल ही में सरकार ने धारा 134ए के तहत निजी स्कूलों में गरीब तबके के 25 फीसदी बच्चों को दाखिला देने के नियम में संशोधन कर 25 से घटाकर दस फीसदी कर दिया। इस कारण प्रदेशभर में साढ़े तीन लाख बच्चे निजी स्कूलों में दाखिला नहीं ले पाए। ऐसे में जब तक उक्त समस्याओं का समाधान नहीं होगा तब तक सुशिक्षित समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है।   
सरकार ने गरीब तबके के बच्चों को उच्चस्तरीय शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए सरकारी स्कूलों की व्यवस्था की। प्रत्येक गांव, कस्बों, तहसील व शहर में सैकड़ों स्कूल खोले गए। बावजूद इसके स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को उच्चस्तरीय शिक्षा तो दूर मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल पा रही हैं। बीते वर्ष किताबें भी दूसरा सेमेस्टर शुरू होने के बाद स्कूलों में पहुंची थी। बता दें कि हिसार में पहली से बारहवीं कक्षा तक के स्कूलों में करीब पांच सौ से ज्यादा शिक्षकों के पद रिक्त हैं। सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की खुद हिंदी व अंग्रेजी भाषा कमजोर है, ये खुलासा एक सर्वे में हुआ है। ऐसे में जब गुरुजी ही परिपक्व नहीं तो वे सुशिक्षित समाज की नींव क्या डालेंगे।
एजुसेट पर आठ करोड़ खर्च 
सरकारी स्कूलों से लेकर महाविद्यालयों में एजुसेट स्थापित किए गए है लेकिन इन्हें दुरुस्त करने पर आठ करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। हिसार में तीस फीसदी एजुसेट खराब पड़े हैं। ऐसे में बच्चों को तकनीक के माध्यम से शिक्षा देने की ये योजना भी दम तोड़ रही है।                                   dj

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