प्राइमरी स्कूलों में करीब 13 साल से पढ़ाते आ रहे जेबीटी टीचरों के सामने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले से परेशानी पैदा हो गई है। हो सकता है इनमें कुछ लोग अपनी योग्यता और मैरिट के आधार पर नौकरी लगे हों, लेकिन इन्हें सिफारिशी मानते हुए हाईकोर्ट ने करीब 2900 पदों पर जेबीटी टीचरों की भर्ती को ही बुधवार को रद्द कर दिया। यह फैसला सरकार के साथ-साथ उन नेताओं और अफसरों के लिए एक सबक है जो अयोग्य लोगों की सिफारिश करते हैं। यह उन बेरोजगार युवाओं के लिए भी बड़ा सबक है जो पढ़ाई में मेहनत और तैयारी करने के बजाय सिफारिश का शार्टकट रास्ता अपनाते हैं। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद ये जेबीटी टीचर अब न घर के रहे और न ही घाट के। यानी 13 साल पढ़ाने के बावजूद फिर से बेरोजगार। आयु सीमा निकलने के कारण नौकरी के लिए दुबारा आवेदन करने लायक भी नहीं रहे। हरियाणा में अपने चहेतों और सिफारिशों को नौकरियां बांटना कोई नई बात नहीं है। पिछले दिनों में हाईकोर्ट 1983 पीटीआई शिक्षकों की भर्ती रद्द करने समेत कई भर्तियों पर सवाल उठा चुका है। हाल ही हरियाणा पब्लिक सर्विस कमीशन के माध्यम से हुई एचसीएस की भर्तियां भी विवादों में हैं। इनमें भी एचपीएससी के चेयरमैन मनबीर भड़ाना की बेटी से लेकर मुख्यमंत्री के ओएसडी की बेटी और बिजली मंत्री कैप्टन अजय यादव के दामाद तक को नौकरियां बांटी गईं। कई अन्य उम्मीदवारों के चयन पर भी इनेलो सवाल उठा रहा है। बुधवार को हाईकोर्ट ने जेबीटी टीचरों की जो भर्ती रद्द की है, वह इनेलो सरकार में ही हुई थी। मौजूदा सरकार में हुई जेबीटी टीचरों की भर्ती में भी फर्जी परीक्षार्थियों को बिठाने के आरोप लगे थे, जिनकी जांच चल रही है। इस तरह सरकारें चाहें जिस पार्टी की भी रही हों, लेकिन 'अपनों' को नौकरियां बांटने में कोई पीछे नहीं रहा। इस फैसले राजनीतिक दलों, सरकारों, नेताओं, अफसरों और बेरोजगार युवाओं को सबक लेना चाहिए कि मैरिट के आधार पर नियुक्तियां करने में ही प्रदेश, समाज और देश की भलाई है। प्रदेश के अच्छे नौकरशाह मिलेंगे, वहीं योग्यता को उचित सम्मान मिलेगा। db
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.