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Saturday, 15 February 2014

शिक्षा के लिए अधिकार है, धन नहीं

शिक्षा की महत्ता को देखते हुए सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून पास बेशक कर दिया है मगर सरकार के पास शिक्षा के लिए धन नहीं है। ऐसा ही कहेंगे, विभिन्न मद के बजट नहीं आने को देखते हुए। स्कूलों में बिल्डिंग के लिए मरम्मत की बात हो या चाहें खेल निधि। स्टेशनरी से लेकर बस्ते तक के लिए भी ग्रांट नहीं। किसी मद का एक साल से बजट नहीं आया तो कोई दो साल से लटक रहा है। कहीं एक किस्त ही नहीं आई तो कहीं दूसरी का इंतजार है। हालत ये हैं कि स्कूल प्रबंधक उधारी तले दबे हैं। ऐसे में उधार वाले गुरुजी के पीछे-पीछे चक्कर काट रहे हैं तो सच्चई का पाठ पढ़ाने वाले गुरुजी के पास टरकाने के जवाब हैं।
कैसे सीखेंगे टीचर
स्कूलों में बिल्डिंग की मरम्मत के लिए प्रतिवर्ष 7500 रुपये बजट आता है वो अधिकांश स्कूलों में नहीं आया। वहीं लर्निग मटीरियल के तौर पर प्रति अध्यापक को मिलने वाले 500 रुपये भी किसी को एक साल से नहीं मिले हैं। सर्वशिक्षा अभियान के तहत बने स्कूली कमरों की कहीं दूसरी किस्त तो कहीं तीसरी किस्त का इंतजार है।
बिना बस्तों के गुजर गया साल
शैक्षणिक सत्र समाप्ति पर है। वित्तीय हालात देखें तो स्कूली बस्तों के लिए 120 रुपये प्रति बच्चे के लिए निर्धारित राशि अभी तक नहीं मिली तो 100 रुपये प्रति बच्चे की निर्धारित स्टेशनरी राशि का भी अनेक स्कूलों में अभी इंतजार है। 
कैसे हो अभिभावकों के साथ बैठक
शिक्षक-अभिभावक बैठक के लिए अलग से मद निश्चित है, जिसका बजट भी करीब एक साल से नहीं आया है। इसके अलावा खेल निधि, बाल कल्याण निधि व भवन निधि का बजट अनेक स्कूलों का एक साल से अटका है।                                                         djftbd

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