** पर्याप्त बजट व शिक्षक सरप्लस होने पर ही सुधार की गुंजाइश
चंडीगढ़ : प्रदेश में शैक्षणिक ढांचे पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद हालात बयां करने लायक नहीं हैं। स्कूलों में कहीं शिक्षक नहीं हैं, तो कहीं बच्चों के बैठने के लिए भवन। अन्य सुविधाओं के बारे में तो कहना ही क्या? अदूरदर्शी नीतियों के कारण शिक्षा का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। शिक्षकों व बजट की कमी शैक्षणिक सुधार में आड़े आ रही है।
शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए बनाई जा रही योजनाएं शिक्षकों, छात्रों व अभिभावकों की भागीदारी न होने से सिरे नहीं चढ़ पा रहीं। शिक्षा विभाग की निजी क्षेत्र पर निर्भरता ने रही-सही कसर पूरी कर दी है। सरकारी स्कूलों में छात्रओं को साइकिलें बांटने, बसों में निशुल्क यात्र, बच्चों को आठवीं कक्षा तक मुफ्त किताबें, मिड-डे मील, एजुकेशन वाया सेटेलाइट, समेस्टर सिस्टम जैसी कई योजनाएं चलाई गईं, लेकिन यह धरातल पर खरा नहीं उतर पाई हैं। छात्रओं को साइकिलें बांटने के बजाए 2500 रुपये की राशि दी जा रही है, बसों में मुफ्त यात्र का पास समय पर नहीं बनता, जबकि निशुल्क किताबें तो समय पर निजी कंपनियां स्कूलों में पहुंचाती ही नहीं। मिड-डे मील में दूषित पदार्थ मिलना आम बात है। 140 करोड़ की एजुकेशन वाया सेटेलाइट योजना को बंद हुए तीन वर्ष से भी अधिक का समय हो चुका है। सेमेस्टर सिस्टम को शिक्षकों के साथ ही छात्र भी नकार चुके हैं। उच्च स्तर की शिक्षा न मिलने पर सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या इस बार सात फीसद कम हुई है। बीते वर्ष 27 लाख छात्र सरकारी स्कूलों में थे। उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रतिस्पर्धा के कारण हालात कुछ संतोषजनक हैं।
शिक्षा का अधिकार कानून पूरी तरह से लागू नहीं
प्रदेश में शिक्षा का अधिकार कानून पूर्णतया लागू नहीं हो पाया है। कानून के तहत प्राथमिक स्कूलों में तीस छात्रों पर एक शिक्षक व छठी से आठवीं तक 35 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए, लेकिन राज्य में प्राइमरी स्कूलों में 45 बच्चों पर एक अध्यापक व छठी से आठवीं तक 50 छात्रों पर एक शिक्षक की व्यवस्था है। सरकारी स्कूलों में चाहिए 40 हजार शिक्षक
प्राइमरी में 11 से 12 हजार शिक्षकों की कमी है, जबकि अन्य मिडल, हाई व सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में 28 हजार के लगभग पद खाली चल रहे हैं। कुल मिलाकर सरकारी स्कूलों में चालीस हजार के आसपास शिक्षकों की कमी है।
शिक्षा स्तर सुधारने को हुए प्रयास
- 100 नए स्कूल नेशनल वोकेशनल एजुकेशन क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क स्कीम में शामिल।
- शैक्षणिक रूप से पिछड़े 36 ब्लॉक में कंप्यूटर लैब सहित आरोही मॉडल स्कूल खोले।
- 3122 राजकीय स्कूलों में कंप्यूटर प्राध्यापकों का प्रावधान किया गया।
- मुफ्त किताबें व वर्दी योजना के तहत लगभग 21 लाख छात्र लाभान्वित ।
- सात नए राजकीय महाविद्यालय खोले गए।
- मीरपुर में स्नातकोत्तर क्षेत्रीय केंद्र को विश्वविद्यालय का दर्जा दिया।
- तकनीकी संस्थान 161 से बढ़ाकर 639 किए।
पाइपलाइन में प्रोजेक्ट
- सोनीपत में भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, कुरुक्षेत्र में राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान, राजीव गांधी एजुकेशन सिटी सोनीपत आइआइटी दिल्ली का विस्तार परिसर झज्जर, भिवानी में खेल विश्वविद्यालय व पंचकूला में राष्ट्रीय फैशन टेक्नोलॉजी संस्थान।
- 15008 स्कूलों में दोहरे डेस्क फर्नीचर उपलब्ध कराना।
- पीजीटी और जेबीटी पदों पर भर्ती।
- 201 सरकारी सहायता प्राप्त निजी स्कूलों के 2 हजार शिक्षकों और 7 सौ गैर शिक्षकों को सरकार के अधीन लेना।
ये हैं अड़चनें
- पर्याप्त बजट न होना
- शिक्षकों की भारी कमी
- निजी कंपनियों पर निर्भरता
- सरकारी अमले को विश्वास में न लेना
- जर्जर ढांचागत सुविधाएं
- अव्यवहारिक योजनाएं लागू करना
- शिक्षकों व शिक्षा विभाग में समन्वय की कमी
- बच्चों व अभिभावकों का सरकारी शिक्षा से विश्वास उठना
सुझाव
- शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 6 फीसद, केंद्रीय बजट का 10 प्रतिशत व राज्य बजट का 30 फीसद खर्च हो।शिक्षकों का एक भी पद खाली न रहे।
- शिक्षकों की स्वीकृत पदों के मुकाबले दस प्रतिशत अधिक भर्ती हो।
- ढांचागत सुविधाएं सुधारी जाएं
- सरकारी अमल को शिक्षा विभाग विश्वास में ले
- निजी कंपनियों पर से निर्भरता कम की जाए
- नई योजनाएं बनाने में शिक्षकों, छात्रों व अभिभावकों की भागीदारी हो
बढ़ानी होगी भागीदारी
हरियाणा स्कूल अध्यापक संघ के राज्य प्रधान वजीर सिंह का कहना हैं कि सरकारी नीतियों ने शिक्षा ढांचे को खोखला कर दिया है। एनजीओ, अफसरशाही व नेता शिक्षा विभाग को चला रहे हैं। पहले शिक्षा की नीतियां शिक्षाविद व बुद्विजीवी बनाते थे, लेकिन अब इनका कोई योगदान नहीं रह गया है। शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए निर्णयों में शिक्षकों की भागीदारी बढ़ानी होगी। हरियाणा मास्टर वर्ग एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष रमेश मलिक ने कहा कि शिक्षा विभाग को अफसरों ने प्रयोगशाला बनाकर रख दिया है। dj
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