हरियाणा शिक्षा नियमावली के नियम 134 ए के तहत निजी स्कूलों में गरीब बच्चों को नि:शुल्क दाखिला देने के मुद्दे पर शिक्षा विभाग और दो जमा पांच आंदोलन के बीच जोर-आजमाइश देख कर इस कहावत का स्मरण हो रहा है कि सूत न कपास, जुलाहे लट्ठम-लट्ठा। खूब बहस हुई, कोर्ट में तारीखें, शिक्षा निदेशक के आदेश, आंदोलन की धमकी आदि के बाद कोई परिणाम नहीं निकला, केवल बात लंबी खींचने की कवायद चलती रही। दाखिला देने के लिए चक्रव्यूह जैसे दो चरण पूरे हो चुके पर कितने बच्चों को दाखिला मिला किसी को नहीं पता। अब दरियादिली दिखाते हुए शिक्षा विभाग ने पिछली बार परीक्षा से वंचित रहे बच्चों को 10 जुलाई को एक और अवसर देने का निर्णय किया है। निजी स्कूल संचालक दाखिला न देने पर अड़े हुए हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारी नि:शुल्क दाखिलों पर जो आंकड़े पेश कर रहे हैं वे वास्तविकता से कोसों दूर हैं। नि:शुल्क दाखिलों के लिए गंभीर प्रयास करने वाले दो जमा पांच आंदोलन के प्रमुख का कहना है कि अभी ढाई लाख गरीब बच्चों को दाखिला दिलाया जाना बाकी है। दूसरी तरफ तस्वीर यह है कि निजी स्कूलों में गरीब बच्चों के अभिभावकों को अपमानित, प्रताड़ित करके खाली हाथ लौटाया जा रहा है। सरकार स्वयं यू-टर्न ले चुकी। उसे अब ईमानदारी से बताना चाहिए कि कितने बच्चों को नि:शुल्क दाखिला मिला और दाखिले से इन्कार करने वाले स्कूल संचालकों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई?
सच्चाई यह है कि एक भी संचालक पर कार्रवाई नहीं हुई। हाईकोर्ट के एक आदेश की स्कूल संचालक अपनी सुविधा के अनुसार व्याख्या कर रहे हैं जिसमें कहा गया था कि जब तक सरकार संबंधित सूची अदालत को नहीं सौंपती तब तक निजी स्कूलों को दाखिला देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इसके बाद तो दाखिला प्रक्रिया पर स्वघोषित विराम लग गया। कुछ पहलुओं पर व्यावहारिक एवं तार्किक दृष्टिकोण अपनाए जाने की आवश्यकता है। अब तक की स्थिति को सामने रखते हुए या तो मुफ्त दाखिले की मुहिम बंद की जाए, या फिर शिक्षा विभाग गरीब परिवारों को सब्जबाग दिखाना बंद करे। दोनों पक्षों को मिल बैठ कर तय करना चाहिए कि क्या संभव है और क्या अतार्किक। djedtrl
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.