कर्मचारियों का रोष अगले कुछ दिनों में सरकार की परेशानियां बढ़ा सकता है। कर्मचारी व शिक्षकों ने 21 जनवरी से तीन दिवसीय हड़ताल पर जाने के एलान के साथ अपनी रणनीति को भी अंतिम रूप दिया है। बार-बार की मीटिंग के बावजूद सरकार कर्मचारियों को विश्वास में क्यों नहीं ले पाई? लगता है कहीं न कहीं सरकारी प्रयासों में ही कोई कमी रही जिस कारण हर वार्ता केवल औपचारिकता बन कर रह गई। कर्मचारियों का सरकार का वादाखिलाफी का आरोप स्वयं इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त है कि विश्वास पर छाया धुंधलका हटाने के लिए न ठोस योजना बनी और न ही व्यावहारिक उपायों को प्राथमिकता में शामिल किया गया। कर्मचारी तालमेल कमेटी की आशंकाओं के निराकरण की कोई युक्ति कामयाब न होने के कारण पैदा स्थिति सीधे तौर पर आमजन के लिए भी परेशानी का कारण बनने जा रही है। यह भी वास्तविकता है कि सरकार ने खास तौर पर रोडवेज कर्मचारियों की मांगों को पूरा करने के स्थान पर उन्हें केवल आश्वासन देकर मामला हर बार तात्कालिक तौर पर टालने की कोशिश की है। पिछले दिनों उन्होंने हड़ताल की और कुछ मांगों को मानने का आश् वासन देकर सरकार ने मामला हवा में छोड़ दिया। 1 रोडवेज कर्मचारियों की सबसे बड़ी मांग साढ़े तीन हजार निजी बस परमिट रद करने की है जिस पर सरकार न हां कर रही है, न ही ना। लाखों रिक्त पदों पर स्थायी नियुक्ति, कई वगरें में पंजाब और कुछ में केंद्र सरकार सरकार जितना वेतन और भत्ते देने की अन्य कर्मचारियों की प्रमुख मांगों पर भी संतोषजनक जवाब न मिलने से आक्रोश बढ़ना स्वाभाविक है। सरकार को चाहिए कि कर्मचारियों की सभी लंबित मांगों की समीक्षा करने और समाधान की समयबद्ध योजना बनाने के लिए विशेष कार्यदल का गठन करे। इस दल में विशेषज्ञ अधिकारियों के साथ कर्मचारी नेताओं को भी शामिल किया जाना चाहिए। सेवा शर्तो और भर्ती नीति को स्पष्ट, व्यावहारिक और पारदर्शी बनाया जाए। इस पहलू की गंभीरता को समझा जाना चाहिए कि बार-बार आंदोलन से सरकार की साख को भारी क्षति पहुंचती है। विश्वास टूटने से कार्यपालिका का ढांचा भी दरकने का खतरा बना रहता है। प्रदेश की आर्थिक विकास दर को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि कर्मचारियों का असंतोष जल्द दूर किया जाए। dj
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