फतेहाबाद : शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार नए-नए प्रयोग कर रही है। हकीकत यह है कि शिक्षकों की एनर्जी शिक्षा से ज्यादा इन प्रयोगों पर खर्च होती है। इनमें मिड डे मील ऐसी योजना है, जिसने शिक्षा की अनिवार्यता को पीछे छोड़ दिया। स्कूल मुखियाओं की मानें तो उन्हें परीक्षा परिणाम से ज्यादा मिड डे मील पकाने की टेंशन रहती है। बजट आए या न आए, लेकिन एक दिन खाना न बना तो निलंबन तय है।
मौजूदा दौर में स्कूलों के संचालन के लिए जिन संसाधनों की जरूरत है वे मिल नहीं रहे। उन संसाधनों के जुगाड़ में सिलेबस नजर अंदाज हो रहा है। बच्चों के ऑनलाइन एडमिशन करवाना, परीक्षा फार्म भरना, बैंकों में खाते खुलवाना, यूनिक कोड जारी करवाना, स्कूल का रखरखाव, खेलकूद व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन ऐसी जिम्मेदारियां हैं जो शिक्षकों के लिए झंझट से कम नहीं हैं। स्कूलों में स्टाफ पहले ही कम है। ऐसे में शिक्षकों का समय कक्षा में कम और राशन की दुकानों पर ज्यादा बीतता है। सरकार की तरफ से मिलने वाली वर्दी व जूते तक शिक्षक खुद खरीदकर लाते हैं। रविवार व सरकारी अवकाश के कारण सप्ताह में मुश्किल से पांच दिन पढ़ाई होती है। एक समस्या यह है कि काम पहले करवाने पड़ते हैं और बजट बाद में मिलता है। सरकार के कई प्रयोगों का हश्र बड़ा दुखद रहा है। लाखों रुपये खर्च हुए, समय भी बर्बाद हुआ और परिणाम शून्य। dj
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