चंडीगढ़ : शिक्षा विभाग की असंवेदनशीलता के कारण 50 हजार गरीब बच्चों को भविष्य अंधकारमय हो गया है। समय से जवाब दायर नहीं करने के कारण हाईकोर्ट के आदेश से निजी स्कूल संचालकों को तो राहत मिल गई है, लेकिन दाखिले का इंतजार कर रहे हजारों बच्चे कहीं के नहीं रहे।
मालूम हो कि हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर सरकार से पूछा था कि निजी स्कूलों में दस प्रतिशत गरीब बच्चों को मुफ्त दाखिलों के पुराने आदेशों का अनुपालन किस तरह से करा रही है। सरकार को न केवल अपना पक्ष रखना था बल्कि व्यवस्था से अवगत भी कराना था, लेकिन विभाग ने जवाब देना जरूरी नहीं समझा। अधिकारियों की लापरवाही से निजी स्कूल संचालकों के साथ उनकी मिलीभगत का संदेह गहरा गया है। अधिकारी काफी समय से गरीब बच्चों को मुफ्त दाखिला देने के पक्ष में नहीं थे। अलग-अलग तरीके से वे इसमें अड़ंगा खड़ा करते रहे। प्रदेश के निजी स्कूलों में ढ़ाई लाख से अधिक सीटें खाली हैं। इनके लिए विभिन्न कक्षाओं के मात्र 50 हजार आवेदन आए हैं। पहली व दूसरी कक्षाओं के लिए ड्रा भी निकाले जा चुके हैं। करीब साढ़े आठ हजार बच्चे ही दाखिलों के लिए ड्रा में पात्र निकले हैं। कक्षा तीन से दस और बारहवीं के लिए 11 मई को विभाग ने पहले एंट्रेस टेस्ट और बाद में विरोध होने पर लर्निग असेसमेंट रख दिया। 4 जुलाई तक केस की सुनवाई होने की वजह से अब यह भी साफ हो गया है कि न केवल दाखिला प्रक्रिया पूरी तरह से लटक गई, बल्कि शिक्षा विभाग के अधिकारी लर्निग असेसमेंट भी कर पाएंगे या नहीं, इस पर भी संदेह है। यदि 4 जुलाई के बाद हाईकोर्ट बच्चों को कोई राहत भी देता है तो आधे से ज्यादा सत्र खत्म हो जाएगा। और उसके बाद भी इस बात की कोई गारंटी नहीं कि निजी स्कूल उनके प्रति हमदर्दी रखेंगे।
शिक्षा विभाग की असंवेदनशीलता का खुलासा हो गया : सत्यवीर
दो जमा पांच मुद्दे जन आंदोलन के संयोजक सत्यवीर सिंह हुड्डा इस पूरे मामले में बेहद आहत हैं। उनका कहना है कि यदि राज्य सरकार और शिक्षा विभाग के अधिकारी थोड़ी भी गरीब बच्चों के प्रति हमदर्दी दिखाते तो आज यह दिन देखना नहीं पड़ता। कोर्ट में यह केस जाने के बाद अब वह भी नए सिरे से पैरवी करेंगे और बताएंगे कि किस तरह से प्रशासनिक व शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ-साथ निजी स्कूल संचालक गरीब अभिभावकों के प्रति गैर जिम्मेदार तथा असंवेदनशील हैं।
सरकार ही अपने दायित्व से भाग रही : कुलभूषण
फेडरेशन ऑफ प्राइवेट स्कूल वेलफेयर एसोसिएशन हरियाणा के प्रधान कुलभूषण शर्मा का कहना है कि हाईकोर्ट का यह फैसला पूरी तरह से सही है। जिन स्कूलों को गवर्नमेंट ने एक पैसे की भी मदद नहीं की, उनसे वह कैसे गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ाने के लिए कह सकती है। स्कूल अपनी मर्जी से गरीबों को शिक्षा दे रहे हैं। वह फ्री में भी पढ़ा रहे हैं, लेकिन सरकार अपने दायित्व से शुरू से ही भाग रही है। शर्मा के अनुसार पहला दायित्व राज्य सरकार का बनता है। शिक्षा मंत्री इस कार्य में फेल साबित हुई हैं। राज्य सरकार अगर दस प्रतिशत बच्चों का पैसा निजी स्कूल संचालकों को नहीं दे सकती। इसका मतलब यह हुआ कि वह गरीबों को गुमराह कर रही है। प्राइवेट स्कूलों ने कभी अपने दायित्व से इन्कार नहीं किया है, लेकिन स्कूलों में राजनीति और आरक्षण के नाम से वोट की राजनीति उचित नहीं है।
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.