चंडीगढ़ : सर्व कर्मचारी संघ ने हुड्डा सरकार की रेगुलराइजेशन पॉलिसी पर सवाल खड़ा किया है। संघ के नेताओं ने कहा कि पॉलिसी की कटऑफ डेट 31 दिसंबर, 2018 के बजाय रविवार की होनी चाहिए। समय अवधि 10 से कम करके दो वर्ष की जानी चाहिए। यह मामला भविष्य पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए, क्याेंकि यह निर्णय लागू होगा या नहीं कुछ पक्का नहीं कहा जा सकता।
संघ के प्रधान धर्मबीर फौगाट और महासचिव सुभाष लांबा ने बताया कि जब तक स्वीकृत पदाें के विरुद्ध नियुक्ति की शर्त रेगुलराइजेशन की नीति में लगाई जाती रहेंगी, तब तक कर्मचारी पक्के नहीं हाेंगे। उन्हाेंने सवाल खड़ा किया कि विभाग यह बताए कि जो कर्मचारी स्वीकृत पदाें के विरुद्ध नहीं लगाए गए, उन्हें वेतन किस प्रकार से दिया जा रहा है।
संघ नेताआें ने कहा कि कई हजार कर्मचारी अलग-अलग विभागों में कार्य के विरुद्ध लगाए हुए हैं और पद स्वीकृत करना, सरकार व विभाग का काम था, जिसने नहीं किया। इसलिए इसकी सजा कर्मचारियाें को नहीं दी जानी चाहिए।
संघ नेताआें ने कहा कि संशोधित नीति में सर्विस प्रोवाइडराें (ठेकेदाराें) के मार्फत लगे कर्मचारियाें, स्वास्थ्य विभाग में एनआरएचएम व अन्य प्रोजेक्टाें में कार्यरत कर्मचारियाें व अन्य विभागों में केंद्रीय परियोजनाआें में कार्यरत कर्मचारियाें को इस संशोधित नीति में भी शामिल नहीं किया गया है। सरकार को भविष्य पर यानि 31 दिसंबर, 2018 तक मामला नहीं छोड़ना चाहिए।
लांबा ने कहा कि 28 मई, 2014 को केबिनेट ने 1997, 1999, 2003 में बनी रेगुलराइजेशन की नीति में पात्र जो कर्मचारी प्रशासनिक डिले के कारण रेगूलर होने से वंचित रह गए थे।
उन्हें रेगुलर करने व पंजाब सरकार की 2011 की नीति को हूबहू लागू करने का निर्णय लिया था। आज कौन सी रेगुलराइजेशन की नीति में संशोधन किया है, यह भी स्पष्ट नहीं है। au
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