प्रदेश सरकार को यह तो स्वीकार करना ही होगा कि उसकी शिक्षा नीति में गंभीर खामी रही है, न वह वर्तमान में स्थिति को सामान्य बनाने में कामयाब हो रही है, न पिछली सरकार की कमियों को ढूंढ़ कर उनके निराकरण में सफल होती दिखाई दे रही है। हर दिन नई चुनौती, समस्या सामने आ रही है, समाधान किसी का नहीं सूझ रहा। करनाल में गेस्ट टीचरों का महापड़ाव चार दिनों से जारी है, सरकार की ओर से कोई ठोस आश्वासन उन्हें नहीं मिला, अधिकारी मिलने भी नहीं जा रहे। इसी दौरान चार हजार से अधिक अतिथि अध्यापकों को हटाने के लिए हाई कोर्ट ने दो सप्ताह का अल्टीमेटम दे दिया, सरकार के प्रतिनिधियों के रूप में उपस्थित मुख्य सचिव तथा शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव ने अध्यापकों को अब तक न हटाए जाने पर कोर्ट में बाकायदा माफी मांगते हुए दो सप्ताह में कोर्ट के आदेश लागू करने की प्रतिबद्धता जताई है। यही नहीं सरकार कोर्ट में अपने पूर्व के स्टैंड पर भी कायम नहीं रह पा रही। पहले स्वयं हलफनामा देकर कहा था कि चार हजार से अधिक गेस्ट टीचर सरप्लस हैं, अब दलील दी जा रही है कि ये तो दस जमा दो तक कक्षा को पढ़ा रहे हैं और टीजीटी की नियुक्ति के बाद ही सरप्लस होंगे। अपनी इसी चंचल प्रवृत्ति के कारण वह गेस्ट टीचरों की मुश्किलें लगातार बढ़ा रही है। सरकार जब स्वयं इतनी दुविधा में है, नीतियों के पालन में अपने को अस्थिर मान रही है तो वह 15 हजार गेस्ट टीचरों को संतुष्ट, समायोजित कैसे करेगी, समझ से बाहर की बात नजर आ रही है। यह भी अजीब बात है कि गेस्ट टीचरों का सीएम सिटी में पड़ाव चल रहा है और कोई मंत्री या सक्षम अधिकारी उनके पास जाने की जहमत नहीं उठा रहा। क्या इस तरह बचने की कोशिश से उसकी साख और छवि को आघात नहीं पहुंच रहा? मुंह छिपाने से समस्या का कभी समाधान नहीं हो सकता, बल्कि उससे तो संकट विकराल रूप ले लेता है, ठीक उसी तरह जैसे किसी बीमारी को आरंभिक अवस्था में नजरअंदाज कर दिया जाए तो अंतत: वह लाइलाज नासूर बन जाती है। सरकार को अपना स्टैंड स्पष्ट करने में अधिक विलंब नहीं करना चाहिए। अस्पष्टता से सभी को नुकसान हो रहा है। इससे पहले कि स्थिति घातक या विस्फोटक रूप ले ले, सरकार को आर या पार के बारे में ईमानदारी से जानकारी देते हुए अपने दायित्व का निर्वहन करना चाहिए। djedtrl
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