गुहला चीका : फेसबुक पर इन दिनों हरियाणा के सरकारी स्कूलों छाये हुये हैं। हर मिनट में कोई न कोई फोटो शेयर हो रही है। स्कूल जाते बच्चे। प्रार्थना करते बच्चे। योगा करते बच्चे। चित्र बनाते बच्चे। रंग भरते बच्चे। इन फोटों को खूब लाइक किया जा रहा है। शेयर किया जा रहा है। कमेंट हो रहे हैं। कमेंट करने वालों में स्कूलों के अध्यापक, आम लोग तथा शिक्षा विभाग के बड़े-बड़े अधिकारी शामिल हैं। ‘क्लास रेडीनेस प्रोग्राम’ के नाम से चलाई जा रही यह कवायद अध्यापकों को भी खूब रास आ रही है। बच्चे मजे ले रहे हैं। स्कूलों की हाजिरी बढ़ रही है।
मजबूरी में शुरुआत
सरकारी स्कूलों के अध्यापक बताते हैं कि बीते साल शिक्षा विभाग समय पर किताबें मुहैया नहीं करवा पाया था तो समय बिताने के लिए आदेश आ गए थे कि बच्चों को कुछ ऐसा सृजनात्मक कार्य कराये जायें। जिससे उनका स्कूलों में मन भी लगे और वे कुछ सीख भी जाएं। इसके लिए सांस्कृतिक गतिविधियां करवाने, चित्र बनवाने, टूटी फूटी बेकार चीजों से कुछ काम की चीजें बनवाने को कहा गया था। निर्देश ये भी थे कि इन तमाम गतिविधियों में बच्चों के सिलेबस से जुड़ी गतिविधियां भी शामिल की जाएं। इससे एक-दूसरे से सीखने व कुछ नया करने की प्रेरणा मिले इसके लिए फेसबुक आईडी बनाकर फोटो शेयर करने को भी कहा गया था।
सारा ताम झाम अध्यापकों का अपना
इस मुहिम में सबसे खास बात यह है कि स्कूलों में होने वाली गतिविधियों की फोटो खींचने के लिए कैमरे शिक्षा विभाग ने नहीं दिए हैं। अध्यापकों ने आपस में चंदा करके खुद जुटाए हैं। अगौंध स्कूल के मास्टर धर्मपाल सहल कहते हैं कि बेशक कैमरा अध्यापकों का निजी है। बच्चों को किसी लोकेशन पर ले जाने का खर्च अध्यापकों का अपना होता है, इंटरनेट का पैक भी खुद अपना डलवाना पड़ता है फिर भी कोई परवाह नहीं होती, बल्कि खुशी होती है कि आज हम कुछ खास करके आए हैं। और जब फेस बुक पर किसी अधिकारी की शाबासी मिल जाए तो उस दिन तो छाती और भी फूल जाती है। खर्चे की फिक्र किसी को नहीं रहती।
कोई बैंक ले गया कोई डाकखाने
सरकारी स्कूल खरौदी के हेड टीचर मामू राम सिरोही बताते हैं कि यह मुहिम इतना रंग पकड़ गई है कि बच्चे स्कूल में आते ही यह सवाल करते हैं कि मास्टर आज क्या करना है। सरकारी हाई स्कूल अगौंध के भूपेंद्र सिंह कहते हैं कि बात तो सिर्फ बच्चों को क्लास के लिए तैयार करने की चली थी, मगर फेसबुक चर्चा ने माहौल ऐसा बना दिया है कि सभी एक दूसरे से ज्यादा और बढिय़ा करने की होड़ में जुट गए हैं। भूपेंद्र बताते हैं कि कोई स्कूल बच्चों को बैंक लेकर जा रहा है। उन्हें वहां प्रेक्टिकली समझाया जा रहा है कि बैंकों में किस तरह कामकाज होता है। कोई स्कूल बच्चों को डाकखाने ले जाकर वहां की कार्यप्रणाली दिखा रहा है। dt
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