** बिना अध्यापक के कैसे होगी बच्चों की पढ़ाई
** सरकारी स्कूलों के बच्चों के भविष्य से खिलवाड़
** बच्चों की नींव ही कमजोर हो जाएगी तो कैसे बढ़ेंगे आगे
फतेहाबाद : आमतौर पर स्कूल में आने से छोटे बच्चे कतराते हैं परंतु गांव बैलभमिया में उल्टी गंगा बह रही है। यहां बच्चे तो सही समय पर स्कूल पहुंच जाते हैं परंतु मास्टर जी ही नहीं आते अगर आते भी हैं तो लेट। मास्टर जी से लेट आने का कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि वह गांव में स्कूल के लिए दाखिला लेने गए थे।
गांव बैलभमिया के सरकारी स्कूल में सात बच्चे ही पढ़ते हैं और उन सात बच्चों पर एक अध्यापक नियुक्त हैं। अध्यापक की लापरवाही की ओर से किसी का भी ध्यान नहीं है। स्कूल में दो कमरे हैं वह भी जर्जर हैं। स्कूल की दीवारों और लेंटर में भी दरारें आ गई हैं। ऐसे में नौनिहालों की जान खतरे में है। इस पर प्रशासन भी ध्यान नहीं दे रहा है।
खुद ही लगाते हैं अपनी हाजरी
प्राथमिक पाठशाला में बरती जा रही लापरवाही पर किसी का भी ध्यान नहीं है। स्कूल में एक अध्यापक हैं वह अपने मन मुताबिक काम करते हैं। यहां तक की अपनी हाजिरी भी खुद लगाते हैं। ऐसे में यदि स्कूल के एक मात्र अध्यापक कहीं चले जाते हैं तो बच्चों को संभालने वाला कोई नहीं है। अध्यापक के न होने पर बच्चे आपस में लड़ाई-झगड़ा भी कर सकते हैं और चोटिल भी हो सकते हैं।
खतरे के साए में बच्चों की पढ़ाई
जिले में अधिकतर सरकारी स्कूल जर्जर हालत में है। शिक्षा विभाग की लापरवाही के कारण बच्चों की जिंदगी पर बन आई है। गांव बैभमिया की प्राथमिक पाठशाला भी ध्वत होने की कगार पर है। स्कूल की हालत इतनी खराब होने के बावजूद शिक्षा विभाग की नींद नहीं खुल रही है। ऐसा नहीं है कि अधिकारियों को इस बात की जानकारी नहीं है लेकिन सब कुछ जानते हुए भी वे लापरवाह बने हुए हैं।
40 साल पहले बनी इमारत
स्कूल की बिल्डिंग काफी पुरानी है। 1973 में कमरे बनकर तैयार हुए थे तब से लेकर अब तक स्कूल की मरम्मत के नाम पर रंगाई या पुताई तक नहीं हुई है। इतने समय पहले भवन की हालत देखकर ऐसा लगता है कि यह भवन कभी भी गिर सकता है। लेंटर के अंदर बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं। दीवारों में भी दरारें पड़ गई हैं, जिसमें से सूरज की रोशनी भी आर-पार नजर आती है। au
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