** याचिका में सिर्फ निजी स्कूलों पर कार्रवाई को लेकर जताया था रोष
चंडीगढ़ : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सरकारी स्कूलों में सुधार का हवाला देकर निजी स्कूल शिक्षा के अधिकार (आरटीई) कानून के तहत जरूरी नियमों का पालन करने से नहीं बच सकते।
पंजाब प्राइवेट स्कूल आर्गनाईजेशन ने केंद्र सरकार के खिलाफ याचिका दायर कर कहा था कि पंजाब में बड़े स्तर पर निजी स्कूल बंद कर दिए गए हैं, जबकि यह स्कूल अनिवार्य शिक्षा प्रदान कर रहे थे। संस्था ने आरटीई के प्रावधान को भारत के संविधान का उल्लंघन बताते हुए उन प्रावधानों को रद्द करने की मांग की थी, जिसके तहत स्कूलों की मान्यता रद्द की जाती है। हाईकोर्ट ने कहा कि राजस्थान की निजी स्कूल संस्था ने भी आरटीई के प्रावधान परखे हैं और सुप्रीम कोर्ट ने भी परखा है। ऐसे में संविधान के प्रावधान केे मुताबिक आरटीई के प्रावधानों में बदलाव करने के लिए हाईकोर्ट हस्तक्षेप करने में असमर्थ है। साथ ही आरटीई के प्रावधानों को संविधान का उल्लंघन बताने में याचिकाकर्ता विफल हैं। आरटीई के प्रावधान 18 में स्पष्ट है कि स्कूल चलाने के लिए पंजीकरण जरूरी है और बगैर पंजीकरण के कोई भी व्यक्ति स्कूल नहीं चला सकता। संबंधित अथॉरिटी से पंजीकरण कराना जरूरी है और अथॉरिटी के पास ही शक्तियां हैं कि यदि कोई स्कूल पंजीकरण नहीं करवाता या फिर आरटीई प्रावधानों का पालन नहीं करता, उसकी मान्यता रद्द की जानी चाहिए। यदि मान्यता लिए बगैर और मान्यता रद्द करने के बाद भी कोई व्यक्ति निजी स्कूल का संचालन करता है तो उस पर एक लाख जुर्माना या 10 हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना लगाया जा सकता है। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा है कि आरटीई लागू होने से पहले के उन निजी स्कूलों को पंजीकरण एवं आरटीई के प्रावधान लागू करने के लिए तीन साल का समय दिया गया था, लेकिन ऐसे अनेक स्कूल संचालक हैं, जिन्होंने पंजीकरण नहीं करवाया या फिर प्रावधान लागू नहीं किए, तभी ऐसे स्कूलों को बंद किया गया।
याचिकाकर्ता संस्था द्वारा सरकारी स्कूलों की हालत के हवाले के बारे हाईकोर्ट ने कहा है कि इसका मतलब यह नहीं है कि निजी स्कूलों को आरटीई के प्रावधानों से छूट दी जा सकती है, दूसरा निजी स्कूल सरकारी स्कूलों की तुलना में कहीं अधिक फीस भी वसूलते हैं। हाईकोर्ट ने संस्था की याचिका खारिज कर दी है।
सवालों के घेरे में याचिका भी
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजय किशन कौल एवं जस्टिस अरुण पल्ली की डिवीजन बेंच हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता संस्था के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा किया कि संस्था ने किसी स्कूल विशेष को बंद करने का जिक्र नहीं किया और न ही यह स्पष्ट हो रहा है कि संस्था पंजीकृत है। सिर्फ वर्ष 2000 में संस्था ने पंजीकरण के लिए अर्जी दी थी, लिहाजा संस्था अपने आप में ही संदेहास्पद है।
यह कहा था याचिका में
हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि प्रदेश में सरकारी स्कूलों की हालत खराब है और कई सरकारी स्कूल आरटीई कानून के प्रावधानों पर खरा भी नहीं उतरते। अब तक ऐसे सरकारी स्कूलों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई और न ही कोई स्कूल बंद किया गया, लेकिन अनेक निजी स्कूलों को आरटीई प्रावधानों का पालन ना करने पर बंद करने के साथ उनकी मान्यता रद्द कर दी गई। au
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