** विद्यार्थियों को एससी व जेआरएफ होने के बावजूद नहीं मिला दाखिला
** जनसंचार एवं मीडिया प्रौद्योगिकी संस्थान और हिंदी विभाग का मामला
कुरुक्षेत्र : खुद के बनाए नियमों को किस तरह से तोड़ा जाता है, यह बात कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी प्रशासन से बेहतर तरीके से कोई नहीं जान सकता। केयू के जनसंचार एवं मीडिया प्रौद्योगिकी संस्थान ने यूजीसी के पीएचडी में दाखिले के लिए दिए नियमों को दरकिनार करते हुए एक छात्रा को दाखिला ही नहीं दिया। जब छात्रा को पता चला कि उसके साथ अन्याय हो रहा है तो 25 अप्रैल और पांच मई को छात्रा दो बार इस मामले में अपना पक्ष रखने के लिए केयू वीसी से मिली।
फिलहाल छात्रा की फाइल केयू प्रशासन के अधिकारियों के दफ्तरों के ही चक्कर काट रही है और अभी तक छात्रा को इंसाफ नहीं मिल पाया है। दिलचस्प बात तो यह है कि जेआरएफ को पीएचडी में दाखिला देने में प्राथमिकता देने के लिए कहा गया है। इसके बावजूद केयू प्रशासन ने जेआरएफ (जूनियर रिसर्च फैलोशिप) छात्रा की अनदेखी कर दी।
यह है जेआरएफ का लाभ :
जूनियर रिसर्च फैलोशिप (जेआरएफ) पास करने वाले विद्यार्थी को पीएचडी में दाखिला लेने पर यूजीसी की ओर से शुरू के दो साल 16 हजार रुपए प्रतिमाह दिए जाते हैं। दो साल के बाद जेआरएफ सीनियर रिसर्च फैलोशिप एसआरएफ में परिवर्तित हो जाता है और यूजीसी की ओर से मिलने वाली राशि 21 हजार रुपए प्रतिमाह हो जाती है। इस तरह से जेआरएफ विद्यार्थियों को बेहतर शोध कार्य करने के लिए खुद यूजीसी आर्थिक सहायता देती है।
केस स्टडी एक- मेरा क्या कसूर
छात्रा सरीना ने कहा कि वह एससी वर्ग से है और जेआरएफ पास किया है। जब उसे पता चला कि उसे इकलौती जेआरएफ होने के बावजूद दाखिला नहीं दिया गया तो वह इस मामले को लेकर संस्थान में पहुंची। इसकी शिकायत भी की, इसके बावजूद कार्रवाई ना होती देख, वह केयू वीसी से इस मामले में 25 अप्रैल और पांच मई को दो बार मिली। इसके बावजूद इस मामले में केयू प्रशासन उचित कार्रवाई नहीं कर रहा है। छात्रा ने कहा कि वह यह जानना चाहती है कि उसका कसूर क्या है, जो उसे नियमानुसार दाखिला नहीं दिया जा रहा है। छात्रा ने कहा कि वह इस मामले को लेकर एससी आयोग, यूजीसी और कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाएगी।
केस स्टडी दो- 5 महीने से अटका दाखिला
हिंदी विभाग में पीएचडी के दाखिले के लिए आवेदन करने वाले छात्र जगमोहन ने बताया कि उसका हिंदी विभाग में पीएचडी दाखिला साढे पांच महीने से अटका पड़ा है। वह जेआरएफ है और एससी वर्ग से है। ऐसे में उसका नियमानुसार दाखिले का हक बनता है। इसके बावजूद केयू प्रशासन उसके चक्कर कटवा रहा है। जगमोहन ने कहा कि अगर 15 मई तक उसे दाखिला नहीं दिया गया तो वह केयू वीसी कार्यालय के बाहर धरने पर बैठने को मजबूर हो जाएगा। छात्र ने कहा कि उसे पीएचडी में सीटें ना होने का हवाला दिया जाता है जबकि आरटीआई से मिली जानकारी में हिंदी विभाग में 12 पीएचडी की सीटें खाली पड़ी हैं।
केयू के पीएचडी नियम में साफतौर पर लिखा है कि पीएचडी प्रवेश परीक्षा से छूट मिलने वाली सीटों में प्राथमिकता के आधार पर जेआरएफ को रखा जाएगा। वहीं प्रदेश की आरक्षित पॉलिसी को भी ध्यान में रखने का नियम है। छात्रा सुरीना इन दोनों ही नियमों में पूरी तरह से फिट है। पहली बात तो वह इकलौती जेआरएफ छात्रा है, वहीं वह एससी वर्ग से भी है।
मामले की जांच के दिए आदेश
केयू वीसी डॉ. डीडीएस संधू ने बताया कि छात्रा दो बार उनसे पीएचडी दाखिले के मामले को लेकर मिली थी। इस मामले में उन्होंने जांच के आदेश दिए थे, जिसमें छात्रा को मेरिट में छठे नंबर पर दिखाया गया है। इसके बाद भी छात्रा संतुष्ट नहीं थी और दोबारा उनसे मिली थी। डॉ. संधू ने कहा कि उन्होंने दोबारा मामले की जांच कराने के आदेश दिए हैं, ताकि मामले में उचित कार्रवाई की जा सके। उन्होंने आश्वासन दिया कि अगर छात्रा की नियमानुसार सीट बनती है तो उसे दाखिला जरूर दिया जाएगा।
आरक्षण पॉलिसी के तहत दिए दाखिले
जनसंचार एवं मीडिया प्रौद्योगिकी संस्थान के निदेशक डॉ. एसएस बूरा ने कहा कि आरक्षण पॉलिसी व नियमों के तहत ही पीएचडी में दाखिले दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि नियमों का किसी तरह से उल्लंघन नहीं किया गया है। इस मामले की रिपोर्ट केयू वीसी को भी दी गई है।
दाखिले के लिए उपयुक्त
केयू के डीन एकेडमिक अफेयर प्रो. राघवेंद्र तंवर ने बताया कि कुल सीटों का 50 प्रतिशत जेआरएफ के लिए होता है। इसमें प्रदेश की आरक्षित पॉलिसी को भी ध्यान में रखा जाता है। अगर छात्रा जेआरएफ भी है और एससी भी तो वह दोनों ही नियमों में दाखिले के लिए उपयुक्त है। वे मामले की जांच कराएंगे। db
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