राजकीय स्कूलों के शिक्षकों की योग्यता के आकलन का सर्वे शिक्षा विभाग की कार्यशैली का इम्तिहान लेने जा रहा है। स्थिति लगभग वैसी ही है जैसी नियम 134 ए के तहत तीसरी से बारहवीं के एंट्रेंस टेस्ट को लेकर हुई थी। तब शिक्षा मंत्री ने स्वयं कहा था कि उनकी जानकारी में ऐसा कोई टेस्ट नहीं है, बाद में कई टर्न आए और अंतत: गरीब बच्चों को अच्छे निजी स्कूल में निश्शुल्क दाखिले के लिए परीक्षा देनी पड़ी थी। शिक्षकों के आकलन सर्वे के बारे में भी मंत्री जी ने कोई जानकारी होने से इन्कार किया है पर साथ ही हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के तीखे विरोध को देखते हुए परीक्षा पर पुनर्विचार के संकेत भी दे डाले। जिला स्तर पर विरोध दिखाने के बाद पंचकुला स्थित शिक्षा सदन पर प्रदर्शन और परीक्षा के संपूर्ण बहिष्कार के एलान को विभाग को हल्के में नहीं लेना चाहिए। चिंतनीय बात यह है कि विभाग की नीति, कार्यशैली और व्यवहार में गंभीर बिखराव बार-बार क्यों दिखाई दे रहा है? निर्णय लेने से पहले आधारभूत स्तर पर कोई काम नहीं किया जा रहा। पहले शिक्षा मंत्री का परीक्षा की जानकारी होने से इन्कार करना, फिर विभाग द्वारा यह बयान जारी करना कि सर्वे में फेल-पास का अध्यापक की एसीआर या वेतनवृद्धि पर असर नहीं पड़ेगा, साफ दर्शा रहा है कि नीति और निर्णय, दोनों मोर्चो पर विभाग गंभीर दिशाहीनता का शिकार है।
सवाल यह भी है कि जब किसी बात का अध्यापकों से सीधा सरोकार ही नहीं तो आकलन या सर्वे का क्या औचित्य है? विभाग का कहना है कि परीक्षा के आधार पर वह अध्यापन की पद्धति को आधुनिक बनाना चाहता है पर परीक्षा का निर्णय लेने से पहले अध्यापकों को विश्वास में लेना चाहिए था। अध्यापकों की योग्यता और दक्षता पर एकाएक अविश्वास करना किसी सूरत में उचित नहीं कहा जा सकता। अध्यापकों के आक्रामक तेवर देख कर लग रहा है कि विभाग विचलित हुआ और नई रियायतें सामने लाई जा रही हैं परंतु अहम पहलू यह है कि सर्वे के निर्णय से पहले व्यावहारिक पहलुओं पर विचार क्यों नहीं किया गया? विभाग में परस्पर तालमेल की चिंताजनक कमी के कारण जब-तब असहज स्थिति पैदा हो रही है। बताया जाए कि इसे दुरुस्त करने के लिए क्या उपाय किए गए हैं? शिक्षा पर अन्य विभागों से अधिक दायित्व व अपेक्षाएं हैं पर यह निर्वहण में सबसे फिसड्डी साबित हो रहा है। जरूरत है रणनीति और कार्य संचालन ढांचे को नया रूप देने की। djedtrl
सवाल यह भी है कि जब किसी बात का अध्यापकों से सीधा सरोकार ही नहीं तो आकलन या सर्वे का क्या औचित्य है? विभाग का कहना है कि परीक्षा के आधार पर वह अध्यापन की पद्धति को आधुनिक बनाना चाहता है पर परीक्षा का निर्णय लेने से पहले अध्यापकों को विश्वास में लेना चाहिए था। अध्यापकों की योग्यता और दक्षता पर एकाएक अविश्वास करना किसी सूरत में उचित नहीं कहा जा सकता। अध्यापकों के आक्रामक तेवर देख कर लग रहा है कि विभाग विचलित हुआ और नई रियायतें सामने लाई जा रही हैं परंतु अहम पहलू यह है कि सर्वे के निर्णय से पहले व्यावहारिक पहलुओं पर विचार क्यों नहीं किया गया? विभाग में परस्पर तालमेल की चिंताजनक कमी के कारण जब-तब असहज स्थिति पैदा हो रही है। बताया जाए कि इसे दुरुस्त करने के लिए क्या उपाय किए गए हैं? शिक्षा पर अन्य विभागों से अधिक दायित्व व अपेक्षाएं हैं पर यह निर्वहण में सबसे फिसड्डी साबित हो रहा है। जरूरत है रणनीति और कार्य संचालन ढांचे को नया रूप देने की। djedtrl
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