अस्थायी या कच्चे कर्मचारियों पर राहतों की बौछार होने से यह तथ्य तो स्वत: सिद्ध हो रहा है कि प्रदेश सरकार पूरी तरह चुनाव के मूड में आ चुकी। विभिन्न विभागों में दस साल की सर्विस पूरी करने वाले कच्चे कर्मचारियों को पक्का किया जाएगा, इसके अलावा पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में वृद्धि की घोषणा भी की गई , रोडवेज चालकों-परिचालकों को विशेष मेहरबानी की जाने वाली है। इन फैसलों के संदर्भ में कई अन्य बातों पर भी गौर किया जाना जरूरी है। पहली तो यह कि सरकार की नियमितीकरण नीति तीन स्तरों तक क्यों विस्तारित की गई है। जो कर्मचारी दस साल की सर्विस पूरी कर चुके, वे नियमित होंगे, साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि जो कर्मचारी 2018 तक दस साल की सेवा पूरी करेंगे, वे भी पक्के होंगे। दोनों स्थितियों में एक जगह विज्ञापित व रिक्त पदों के साथ विधिसम्मत औपचारिकताओं, अनिवार्यताओं की शर्त है पर दूसरी में ये शर्ते नहीं रहेंगी। तीन साल में नियमितीकरण की पंजाब पॉलिसी का हाल ही में सरकार ने अनुसरण किया है, नई घोषणा के साथ वह भी चलती रहेगी। रोडवेज कर्मचारियों को पक्का करने के लिए शपथ पत्र की शर्त लगाई गई है। इन सब व्यवस्थाओं से एक बात साफ तौर पर सामने आ रही है कि सरकारी नीति निर्धारकों, नियामकों में समन्वय का घोर अभाव है। तार्किक और व्यावहारिक निर्णय न लेकर तात्कालिक वाहवाही लूटने पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। सरकारी विभागों, बोर्डो, निगमों के लिए पंजाब की नीति ग्रहण कर ली गई पर हरियाणा मिनिस्टियल स्टाफ एसोसिएशन यानी हेमसा के लिए वह लागू क्यों नहीं की जा रही? एसोसिएशन ने पंजाब के समान वेतन-भत्तों की मांग पर रोहतक में मुख्यमंत्री निवास घेरने की कोशिश की, पुलिस से झड़प भी हुई। सरकार पर एक हांडी में दो पेट करने की नीति अपनाने का आरोप लग रहा है। स्पष्ट होना चाहिए कि कर्मचारियों को लाभ देने में दोहरे मानक क्यों अपनाए जा रहे हैं? क्या हेमसा की मांग अतार्किक है? यदि सरकार ऐसा मानती है तो हेमसा भी पंजाब नीति को अप्रासंगिक ठहरा सकती है। सरकार को चाहिए कि कर्मचारियों को विभिन्न गुटों में न देख कर समग्र रूप से व्यवहार करे और ऐसी नीति बनाए जो सबको संतुष्ट कर सके। नीति कई घुमाव लेकर भूलभुलैया का रूप ले चुकी, इससे सरकार की विश्वसनीयता और साख पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने से इन्कार नहीं किया जा सकता। djedtrl
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