एक सरकार ने प्रक्रिया से खिलवाड़ किया, दूसरी सुधार के बजाय अदालती आदेश का पालन करने के नाम पर खेल ही खत्म करना चाहती है। 519 अतिथि अध्यापकों को हटाने के बाद अब शिक्षा विभाग ने सरकार से 4073 और गेस्ट टीचरों को बाहर का रास्ता दिखाने की अनुमति मांगी है। दलील दी जा रही है कि मास्टर वर्ग में काम कर रहे ये अतिथि अध्यापक सरप्लस हैं। अब आशंका है कि सरप्लस की तलवार कहीं पीजीटी, सीएंडवी और जेबीटी वर्ग पर भी न चल जाए। पिछली सरकार ने बिना किसी तार्किक आधार के आनन-फानन में 15 हजार से अधिक अतिथि अध्यापकों की भर्ती कर ली थी। तब तर्क दिया गया था कि सरकारी स्कूलों में अध्यापकों की भारी कमी के कारण शिक्षण प्रभावित हो रहा है, स्थायी शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया लंबी है, इसलिए तात्कालिक तौर पर अतिथि अध्यापक नियुक्त करना जरूरी है। इतनी अधिक नियुक्ति तदर्थ आधार पर कर दी गई कि फिर स्थायी शिक्षक भर्ती करने की सरकार को जरूरत ही महसूस नहीं हुई। राज्य में पात्र अध्यापकों की फौज खड़ी हो गई, सरकारी सेवा में एंट्री का मार्ग ही नहीं बचा क्योंकि हर मोड़ पर खड़े गेस्ट टीचर उनका रास्ता रोकते नजर आए। दूरदर्शिता, पारदर्शिता, तार्किकता और व्यावहारिकता के मापदंडों की गंभीरता और अनिवार्यता की ओर पूर्ववर्ती सरकार का कभी ध्यान नहीं गया, वर्तमान को भविष्य पर तरजीह दी जाती रही और तदर्थवाद के खोखले धरातल पर शिक्षा विभाग की गाड़ी घिसटती रही। वास्तविक पात्र को अधिक दिन तक रोक पाना या हक से वंचित रख पाना संभव नहीं होता। संकुचित सोच कभी उत्साहजनक परिणाम नहीं दे सकती। नई सरकार ने भी वैसी ही असहायता दिखाई जो पिछले सत्ताधारियों ने जाते-जाते दिखाई थी। इस खेल में गेस्ट टीचर की हालत अनाज के उन दानों जैसी है जो चक्की के दो पाटों के बीच आ गए हैं। दो स्तरों पर गंभीर चूक हुई। पहले तो प्रक्रिया के मानकों को नजरअंदाज किया गया और दूसरे उन्हें नियुक्ति देने के बाद स्थायी करने की कोशिश नहीं की गई, सब्जबाग दिखाए जाते रहे ताकि एक बड़ा वोट बैंक सटा रहे। पिछली सरकार तो गलती पर गलती करती गई पर नई सरकार से उम्मीद थी कि हजारों परिवारों को चौराहे पर आने से बचा लेगी लेकिन इस आस पर भी पूर्ण विराम लगता दिखाई दे रहा है। अदालती बाध्यताओं, अनिवार्यताओं, जवाबदेही के बीच मानवीय पहलू पर अंतिम प्रयास के तौर पर एक बार तो सरकार को अवश्य सोचना चाहिए। dj
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