पहले गेस्ट और फिर पात्र अध्यापकों का सीएम सिटी करनाल में डेरा डालना साबित करता है कि शिक्षा क्षेत्र में नियम, प्रक्रिया और मंशा को स्पष्ट, व्यावहारिक और पारदर्शी बनाने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। बार-बार के आश्वासनों से खिन्न साढ़े नौ हजार से अधिक नव चयनित जेबीटी अध्यापकों ने करनाल में महापंचायत करके दर्शा दिया है कि या तो सरकार उनकी दुविधा, अनिश्चय का अंत करे या फिर आरपार की लड़ाई का सामना करने को तैयार रहे। प्रदेश में जेबीटी अध्यापक की स्थिति बिना राज्य के मुख्यमंत्री, बिना देश के राष्ट्रपति और बिना धन के कुबेर जैसी है। सरकारी मानकों के अनुसार उनका चयन तो हो गया लेकिन नियुक्ति पत्र नहीं मिला यानी वे अध्यापक नियुक्त तो हो गए पर न ड़्यूटी पर हैं और जब ड्यूटी ही नहीं तो वेतन कैसा? उनके साथ दो स्तरों पर सौतेला व्यवहार किया गया। न तो सरकार ने 30 मार्च, 2012 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए उन्हें 322 दिनों में नौकरी दी और पिछले वर्ष जैसे-तैसे नियुक्ति के लिए पात्र माना तो चयन सूची जारी होने के आठ माह बाद भी नियुक्ति पत्र नहीं दे रही।
तकनीकी जांच की फांस अड़ा कर उनके भविष्य को अंधकारपूर्ण बनाने के हालात पैदा किए जा रहे हैं। जेबीटी अध्यापकों की चिंता वाजिब है और विरोध न्यायसंगत। सरकार यह कह कर जिम्मेदारियों से नहीं भाग सकती कि पिछली सरकार की गलत नीतियों, प्रक्रिया और अदूरदर्शिता का ठीकरा उस पर क्यों फोड़ा जाए? जो अब सत्ता में है, उसे पिछली गलतियों को सुधार कर नई संभावनाओं, उम्मीदों का मार्ग प्रशस्त करना अपनी प्राथमिकता में शामिल करना चाहिए। सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती सभी पक्षों की संतुष्टि और उनके भविष्य को सुनिश्चित करने की है। उसके प्रबंध कौशल की क्षमता दिखाने का समय है, यदि वह इसमें विफल रहती है तो सत्ता में बने रहने का कोई हक नहीं। एक तरफ दस हजार तो दूसरी तरफ 15 हजार अध्यापकों के वर्तमान-भविष्य का सवाल है। मुख्यमंत्री से मुलाकात और आश्वासन मिलने के बाद जेबीटी अध्यापकों ने अपना आंदोलन स्थगित करने का फैसला किया है लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि जख्म का इलाज समय पर न हो वह नासूर बन जाता है और असंतोष का समाधान न हो तो बारूद। इससे पहले कि हालात बिगड़ें, सरकार को दो शिक्षक वर्गो को तत्काल न्याय प्रदान करने के लिए अपेक्षा से अधिक मुस्तैदी दिखानी ही होगी। djedtrl
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