राजकीय स्कूलों में क्लास रेडिनेस प्रोग्राम (सीआरपी, कक्षा तत्परता कार्यक्रम)का ज्ञान लेते-लेते परीक्षा का सिलेबस भूल गए। बोर्ड परीक्षा की तैयारी के लिए सिर्फ 45 दिन ही मिले। इतने कम समय में सिलेबस पूरा नहीं हो सकता। इसका नुकसान विद्यार्थियों को उठाना होगा।
बच्चों से कहीं खिलौने बनवाए गए तो कहीं भ्रमण करवाया गया। दुनियादारी समझाई, आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, पर सिलेब्स में पीछे रह गए। इसका असर रिजल्ट पर देखने को मिल गया।
सवाल- प्रक्रिया इतनी लंबी क्यों, पाठ्यक्रम कब होगा
इस वर्ष शिक्षा बोर्ड का शैक्षणिक स्तर 1 अप्रैल से शुरू हुआ है। 22 मई तक सभी सरकारी स्कूलों में सीआरपी के तहत कार्यक्रम होंगे। शैक्षणिक पाठ्यक्रम पर ध्यान नहीं दिया जाएगा। दो महीने का समय ऐसे ही निकल जाएगा। सितंबर में पहले सेमेस्टर की परीक्षाएं होती हैं। जुलाई अगस्त का ही समय बचेगा। इन 60 दिनों में से भी रविवार सरकारी अवकाश आदि के 15 दिन निकल जाएंगे। 45 दिन में कैसे पाठ्यक्रम पूरा होगा और रिजल्ट कैसे अच्छा आएगा ?
सुधार इस तरह : पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाएं
विशेषज्ञों का मानना है कि सीआरपी के नुकसान के साथ इसके कुछ फायदे भी हैं, इसलिए इसे पूरी तरह से बंद करना भी उचित नहीं रहेगा। इसके लिए कोई बीच का रास्ता निकालना आवश्यक है। अगर सीआरपी को पाठ्यक्रम का हिस्सा बना दिया जाए और इसके लिए कोई समय सीमा रखी जाए तो इससे फायदे मिल सकते हैं। सरकारी स्कूल में कार्यरत सीआरपी इंचार्जों का कहना है कि अभी सीआरपी के लिए समय सीमा निश्चित की गई है, जिसके कारण उस समय सीमा में पाठ्यक्रम से बच्चों का ध्यान दूर हो जाता है। इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बना दिया जाए तो किसी को भी जल्दबाजी करने की आवश्यकता नहीं रहेगी।
असर-सीआरपी के आते ही रिजल्ट गिरता चला गया
जब से सरकारी स्कूलों में कक्षा तत्परता का कार्यक्रम शुरू किया गया है, तब से हरियाणा शिक्षा बोर्ड का रिजल्ट लगातार गिर रहा है। सीआरपी को 2013 में शुरू किया गया था। अबकी बार इसका तीसरा वर्ष है। 2012 में जब सीआरपी नहीं था तो दसवीं में पास होने वाले छात्रों का प्रतिशत 65.10 और बारहवीं में पास होने वाले छात्रों का प्रतिशत 65.39 था। 2015 तक यह औसत गिरती हुई दसवीं में 41.28 और बारहवीं में 53.96 प्रतिशत रह गई है। dbpnpt
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