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Monday, 22 June 2015

शिक्षा ढांचे में बदलाव से फिरेंगे स्कूलों के दिन

** प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने को करने होंगे भगीरथ प्रयास
** शिक्षक संगठनों का नर्सरी अनिवार्य रूप से लागू करने का सुझाव
चंडीगढ़ : प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पटरी से उतर चुकी शिक्षा की गाड़ी को शैक्षणिक ढांचे में बदलाव किए बिना ट्रैक पर लाना मुश्किल है। प्रदेश सरकार और स्कूल शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी भी इससे इत्तफाक रखते हैं। 
बावजूद शिक्षा का स्तर सुधरने के बजाए सरकारी स्कूलों में गिर रहा है। माध्यमिक व उच्च शिक्षा में नए आयाम स्थापित करने के लिए प्राथमिक शिक्षा का स्तर सबसे पहले सुधारना होगा। बच्चों की नींव कमजोर होने के कारण ही बड़ी कक्षाओं में बेहतर परिणाम सामने नहीं आ रहे। सरकार व अधिकारी कई बार शिक्षा के दुर्दशा के लिए सीधे तौर पर शिक्षकों को दोषी ठहरा चुके हैं। लेकिन शिक्षक इससे सहमत नहीं हैं। शिक्षकों की नजर में स्कूली शिक्षा की खराब हालत के लिए सरकारों की अदूरदर्शी नीतियां और बेतुके प्रयोग जिम्मेदार हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल और शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा ने अप्रैल महीने में स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए सभी शिक्षक संगठनों से वार्ता की थी। उन्होंने शिक्षकों व शिक्षक संगठनों से सुझाव भी मांगे। देर से ही सही मगर शिक्षकों ने इस दिशा में आगे आना शुरू कर दिया है। राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ हरियाणा के मुख्य सचिव सुनील बास ने सरकार को शिक्षा में सुधार के लिए अनेक सुझाव भेजे हैं। बास के अनुसार प्राथमिक स्कूलों में निजी स्कूलों की तर्ज पर नर्सरी कक्षाएं अनिवार्य की जाएं। पूर्व सरकार ने शिक्षा को मात्र प्रयोगशाला बनाकर रख दिया था। उन्होंने कहा कि पहली कक्षा से परीक्षा पद्धति दोबारा शुरू करना बेहद जरूरी है। प्राथमिक स्कूल स्तर पर अनिवार्य रूप से मुख्य शिक्षक, क्लर्क, चपड़ासी व स्वीपर का पद गैर शैक्षणिक स्टाफ के तहत स्वीकृत हो। विभाग का सारा डाटा निदेशालय व जिला स्तर पर उपलब्ध होने के कारण स्कूलों पर बिना वजह आरटीआइ का बोझ न डाला जाए।                                                                               dj

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