सर्वशिक्षा अभियान के तहत जो काम नौ माह में नहीं हुआ अब शिक्षा विभाग इसे आनन फानन में कराना चाह रहा है। अभियान के तहत कम से कम 1.77 करोड़ किताबें छापी जानी हैं। हालात यह हैं कि अभी तो टेंडर के लिए आवेदन मांगे गए हैं।19 अगस्त को टेंडर खुलेगा। इसके बाद कब किताबों की छपाई होगी और कब किताब बंटेगी। इस पर शिक्षा मंत्री से लेकर विभाग के अधिकारी तक कुछ भी बता पाने की स्थिति में नहीं है।
प्रकाशक को इतना समय क्यों दिया गया: लाख टके का सवाल तो यह है कि प्रकाशक को इतना समय क्यों दिया गया। वह भी तब जबकि इस बार प्रदेश में स्कूल का सत्र समय से पहले ही शुरू हो गया था। अमूमन सत्र 31 मार्च के बाद शुरू होता है, लेकिन इस बार इसे 24 मार्च में ही शुरू कर दिया गया। प्रवेश उत्सव मना कर बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाया गया। प्रकाशक को समय मिले इसके लिए शिक्षा विभाग ने ऐसी नीति बनाई कि किताब की जरूरत ही न पड़े।
इसके लिए बच्चों को दूसरी गतिविधियों में व्यस्त कर दिया गया। यह पूरी संभावना थी कि गर्मी की छुट्टियों के बाद किताबें मिल ही जाएंगी। स्कूल खुले लेकिन तब भी किताब नहीं मिली। इसके बाद भी प्रकाशक को समय मिलता रहा। विभाग के अधिकारियों और शिक्षा बोर्ड ने यह देखने की जहमत ही नहीं उठाई कि किताब छप भी रही हैं या नहीं।
शिक्षक भी परेशान
इधर शिक्षकों का कहना है कि किताब के बिना बच्चों को पढ़ाए कैसे? जब खराब रिजल्ट आता है तो उनसे जवाब मांगा जाता है। वे इसका जवाब कहां से दें। अध्यापक नेता प्रदीप सरीन ने बताया कि 220 वर्किंग डे पढ़ाई के हैं। पहले सेमेस्टर के लिए 110 दिन की पढ़ाई चाहिए। लेकिन इसमें से 75 दिन निकल चुके हैं। अब बाकी दिनों में कैसे पढ़ाई पूरी हो सकती है?
कक्षा टाइटल बच्चे
3 8 2.61
4 9 2.60
5 9 2.49
6 18 2.21
7 18 2.13
8 18 1.76
(बच्चों की संख्या लाखों में है)?
अब कहां से आएंगे प्रकाशक
पहले एक ही प्रकाशक को सारी किताबों का टेंडर दिया गया था। अब सरकार का दावा है कि हर कक्षा के लिए अलग-अलग प्रकाशकों को जिम्मा सौंपा जाएगा। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इतने प्रकाशक आएंगे कहां से? इनेलो प्रदेश अध्यक्ष अशोक अरोड़ा का कहना है कि स्कूल की किताबों में बड़ा घोटाला हुआ है। लेकिन सरकार आरोपी अफसरों को बचा रही है। इस मामले की जांच होनी चाहिए। ..db
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