कुरुक्षेत्र : कभी स्कूलों में किताबें नहीं और किताबें आई तो उनको पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं। जबकि प्रदेश सरकार की ओर दावा प्रदेश को शिक्षा का हब बनाने का। यह स्थिति है सरकारी स्कूलों की। पहले जहां एक सेमेस्टर तक स्कूलों में किताबें समय पर नहीं पहुंच पाई तो लगभग दो माह से शिक्षक वोट बनाने के काम में जुटे हैं और स्कूल फिर खाली। इसमें जिला प्रशासन की मनमानी की मोलिक शिक्षा महानिदेशक के आदेश भी शिक्षकों को इन कार्यो से निजात दिलाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। 1सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर कैसे उपर उठाया जाए इसमें शायद शिक्षक माथा-पच्ची करते हों, मगर स्कूलों में शिक्षण कार्य प्रभावित हो तो जिला अधिकारियों को क्या? पिछले सेमेस्टर के पूरा बीत जाने के बाद स्कूलों में किताबें पहुंची थी और तब कहीं जाकर स्कूलों में शिक्षण कार्य चला था कि जिला उपायुक्त की ओर से शिक्षकों की ड्यूटियां मतदान में लगा दी गई। शिक्षकों ने इस बारे में मौलिक शिक्षा निदेशक से मुलाकात की तो उन्होंने शिक्षकों की ड्यूटियां लगाने से मना करते हुए साफ तौर पर आदेश जारी कर दिए, लेकिन महानिदेशक के आदेश जिला प्रशासन को प्रभावित नहीं कर पाए और 16 सितंबर को जारी आदेशों के बाद भी शिक्षकों की ड्यूटियां लगाई गई। उस समय यह बहाना दिया गया कि थोड़े दिन शिक्षक यह कार्य कर दें बाद में यह कार्य किसी ओर से करवा लेंगे, लेकिन शिक्षक पिछले दो माह तक वोट बनाते रहे, लेकिन इसके बाद भी अधिकारियों की नींद नहीं टूटी और फिर से शिक्षकों को इन वोटों की काटछांट के लिए कार्यालयों में तलब किया गया है। प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष विनोद चौहान ने बताया कि शिक्षक पिछले दो माह से इस कार्य में जुटे हैं और स्कूलों में शिक्षण कार्य ठप्प पड़ा है। जबकि उनकी जिम्मेवारी विद्यार्थियों को उचित शिक्षा देने की है न की इसको छोड़कर अन्य कार्य करने की। dj
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