** हियरिंग मशीन 80 हजार व दांत लगवाने के लिए 5540 रुपये का बिल बनाकर भेजा उपचार करवाने वालों ने
गुरुजी शिक्षा विभाग में मेडिकल क्लेम के नाम पर वास्तविक बिलों से दस गुणा ज्यादा बिल बनाकर भेज रहे हैं। हालांकि विभाग को इसमें काफी माथापच्ची करनी पड़ती है तब जाकर कहीं क्लेम बिल ठीक कर पाते हैं। मगर अपनी ओर से गुरुजी अच्छा खासा बिल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। प्रौढ़ अवस्था में प्रवेश कर चुके गुरुजी के स्वास्थ्य की चिंता सरकार को भी है। इसलिए अबकी बार उसने पिछले बजट की तुलना में दस लाख रुपये की वृद्धि कर दी।
जून 2013 से अब तक जिला शिक्षा कार्यालय में 252 स्कूल लेक्चरर, प्रिंसिपल और मास्टर ने मेडिकल क्लेम लेने के लिए आवेदन किया है। इनमें से सबसे ज्यादा रिटायर्ड है। करीब 100 आवेदक मेडिकल क्लेम ले चुके हैं। 2013-14 में डीईओ कार्यालय के पास 40 लाख का मेडिकल बजट आया। विभाग ने 35 लाख रुपये मेडिकल क्लेम में खर्च कर दिया। केवल पांच लाख रुपये ही सरकार के पास वापस गए। गुरुजी के बीमार होने के कारण ही 2014-15 के बजट में 10 लाख की वृद्धि करते हुए सरकार ने 50 लाख रुपये का बजट कर दिया। वहीं जिला मौलिक शिक्षा कार्यालय में भी लगभग 70 अध्यापकों ने मेडिकल बिल के लिए क्लेम किया हुआ है।
हियरिंग मशीन का 80 हजार बिल, पास हुए 6 हजार
मेडिकल योजना का ज्यादा से ज्यादा लाभ लेने के लिए गुरुजी हर समय तत्पर रहते हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अगर किसी गुरुजी के दांत भी टूट गए तो वह उसके लिए मेडिकल क्लेम मांगता है। जीएसएसएस रिसालिया खेड़ा के एक रिटायर्ड प्रिंसिपल के दांत टूट गए। गुरुजी ने हिसार के जिंदल अस्पताल से अपना इलाज करवाया। दांत लगवाने के लिए गुरुजी ने 5540 रुपये का बिल डीईओ कार्यालय के हाथ पर थमा दिया। हालांकि बाद में केवल दो हजार रुपये का ही बिल पास हुआ। वहीं एक अन्य रोचक किस्से में बन सुधार के स्कूल में गुरुजी रिटायर्ड हुए। रिटायरमेंट के बाद कानों से सुनाई देना बंद हो गया। गुरुजी ने मेडिकल योजना का लाभ लिया। दोनों कानों के लिए हियरिंग मशीन ली तो 80 हजार रुपये का बिल बना दिया। हालांकि शिक्षा निदेशालय ने केवल 6 हजार रुपये का बिल ही पास किया। लुधियाना के अस्पताल से इलाज करवा चुकी रिटायर्ड टीचर के 2 लाख 19 हजार रुपये के एक बिल में से केवल एक लाख रुपए का बिल पास हुआ। जबकि इसी टीचर के एक लाख 23 हजार रुपये के बिल में से 70 हजार रुपये का बिल पास हुआ।
बिल पड़े हैं पेंडिंग
जीएसएसएस अलीकां के एक अध्यापक के बेटे को अनीमिया के रोग से पीडि़त है। उनका बिल 7 लाख 87 हजार रुपये का बना है। भारी राशि होने के कारण अभी उनका बिल शिक्षा निदेशालय हरियाणा से पास नहीं हुआ। जीएसएसएस नेजाडेला खुद के एक अध्यापक का एक लाख 19 हजार रुपये का बिल पेंडिंग है। एक अन्य रिटायर्ड बीईओ का 1 लाख 38 हजार रुपये का बिल, बन सुधार के रिटायर्ड हैड मास्टर का 4 लाख 33 हजार रुपये बिल भी बकाया है।
अध्यापकों के लिए फायदेमंद है यह योजना
सरकारी नौकरी में कार्यरत और सेवारत अध्यापकों और उनके परिवारों के लिए मेडिकल क्लेम पॉलिसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है। सरकार की पॉलिसी के अंतर्गत पीडि़त अध्यापक और उसके आश्रितों के लिए पूरा पैसा अदा करती है। हालांकि सरकार ने सरकारी अस्पतालों और चुनिंदा प्राइवेट अस्पतालों में मेडिकल की सुविधा उपलब्ध करवाई है। लेकिन एमरजेंसी केस में प्राइवेट अस्पताल के डाक्टर लिखकर देते हैं और सिविल अस्पताल के सीएमओ उसे सर्टिफिकेट जारी करते हैं। तब हर रोग के निर्धारित मापदंडों के अनुसार ही शिक्षा निदेशालय मेडिकल बिलों का क्लेम देता है।
शिक्षा निदेशालय से होते हैं ऑडिट
"अलग अलग केस के लिए सरकार ने रेट फिक्स किए हुए है। डाक्टर ही बिल बनाते हैं। बिल नियमों के अनुसार ही ऑडिट होकर शिक्षा निदेशालय से पास होते हैं। कौन ज्यादा बिल बनाता है, इस विषय पर वे कुछ नहीं कह सकते।"--कुमकुम ग्रोवर, जिला शिक्षा अधिकारी। सिरसा। dbsrs
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