तदर्थ कर्मचारियों को नियमित करने की सरकार की युक्तियों के बीच शिक्षा क्षेत्र में ऐसा रणक्षेत्र तैयार हो गया है जो प्रशासन के साथ विद्यार्थियों की अग्निपरीक्षा का कारण बन सकता है। कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए सरकार कई स्तरों पर व्यूह रचना कर रही है, अजरुन की तरह उसे मछली की एक आंख दिखाई दे रही है, इधर-उधर फैले अन्य कारक, समानांतर अवस्थाएं और संबंधित पक्षों की ओर तनिक भी ध्यान नहीं। सरकार व शिक्षा विभाग की घोर अदूरदर्शिता के कारण शिक्षा क्षेत्र में जिस वर्ग भेद की आशंका जताई जा रही थी, वह सच साबित होती दिखाई दे रही है। अतिथि अध्यापकों के मुकाबिल पात्र अध्यापकों का आ डटना गंभीर चिंता का विषय है। आरंभिक अवस्था में ही इस वैमनस्य के निराकरण के उपाय न किए गए तो भविष्य में स्थिति भयावह हो सकती है। पंचकूला में अध्यापक भर्ती बोर्ड के बाहर धरना देकर पात्र अध्यापकों ने गेस्ट टीचरों के प्रति सरकार के अति मोह को लेकर अनेक सवाल उठाए हैं। उनका आरोप किसी हद तक तार्किक माना जाना चाहिए कि जेबीटी के 9870 पदों की चयन सूची जानबूझ कर रोकी जा रही है ताकि गेस्ट टीचरों के बारे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल टाला जा सके। सरकार की नीति लगातार विरोधाभासी रही है। स्थायी नियुक्ति के स्थान पर हमेशा तदर्थ आधार पर शिक्षक भर्ती को ही अधिमान दिया जाता रहा। स्थायी भर्ती करनी ही नहीं थी तो हर वर्ष अध्यापक पात्रता परीक्षा क्यों करवाई जाती रही? प्रदेश में चार लाख से अधिक पात्र अध्यापक बेरोजगार हैं और साथ ही अध्यापकों के हजारों पद भी खाली हैं। दूसरी तरफ चरणबद्ध तरीके से पंद्रह हजार से अधिक गेस्ट टीचरों की भर्ती कर ली गई। हालांकि कारण वाजिब था कि अध्यापकों के पद रिक्त होने के कारण पाठ्यक्रम पूरा नहीं हो रहा जिससे शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, पर इसके लिए प्रक्रिया गलत अपनाई गई। यदि आधारभूत औपचारिकताएं पूरी की जाती तो आज अनिश्चय और टकराव की स्थिति नहीं ङोलनी पड़ती। सरकार की तात्कालिक लाभ देने की नीति ही शिक्षा विकास की बड़ी बाधा बनी हुई है। क्या पात्र अध्यापकों के साथ न्याय करने की स्थिति में है सरकार? क्या उन्हें रोजगार देने की जिम्मेदारी उसकी नहीं? गेस्ट टीचरों और पात्र अध्यापकों के बीच टकराव रोकने के लिए सरकार को पुख्ता इंतजाम करने होंगे। djedtrl
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