शिक्षा विभाग में प्रयोगवाद का खेल जारी है। शिक्षा का स्तर ऊंचा करने, सौ फीसद साक्षरता दर लाने, शिक्षा को प्रतिस्पर्धात्मक रूप देने, शिक्षकों के सभी पद भरने, पद के अनुरूप काम व मान सम्मान देने जैसे मुद्दों पर विभाग में कभी सार्थक बहस होती तो सबको अच्छा लगता, यहां तो गरमागरमी हो रही है पर उन बातों पर जो तात्कालिक संतुष्टि या अहम से जुड़ी हैं। शिक्षा विभाग ने रेशनेलाइजेशन में स्थायी शिक्षकों पर अतिथि अध्यापकों को तरजीह दी है। नए फरमान के तहत जिन स्कूलों में अध्यापक सरप्लस हैं, वहां तबादले की गाज नियमित वरिष्ठ अध्यापक पर गिरेगी। निर्देशों के मुताबिक जिन स्कूलों में अतिथि अध्यापक सरप्लस हों वहां भी नियमित शिक्षकों को ही सरप्लस दिखाना होगा। रेशनेलाइजेशन के मानकों पर विभिन्न स्तरों पर विभाग अपनी ही बात से भटक रहा है। सभी को संतुष्ट करने की नीति पर चलने की विभाग से लगातार अपेक्षा की जाती रही है पर हर बार कोई नया पेंच फंस जाता है और पलड़ा एक ओर झुक जाता है। तबादले के लिए किसे पात्र माना जाए, इस पर भी मनमाने तरीके से मानक तय किए जा रहे हैं जिनमें तार्किकता ढूंढ़ने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ेगी। शिक्षा विभाग की नीतियों, आदेशों से शिक्षकों के बीच दूरियां लगातार बढ़ रही हैं। क्या नए फरमान से नियमित वरिष्ठ अध्यापकों का नजरिया गेस्ट टीचरों के प्रति बदल नहीं जाएगा? हरियाणा मास्टर वर्ग एसोसिएशन ने सीधा आरोप लगाया है कि सरकार गेस्ट टीचरों को खुश करने के लिए नियमित शिक्षकों को निशाना बनाने जा रही है। उन्होंने आंदोलन की रूपरेखा भी तैयार कर ली। उनकी मांग को गंभीरता से लेते हुए सरकार व शिक्षा विभाग को रेशनेलाइजेशन के लिए सभी शिक्षकों को एक नजर से देखना होगा। शिक्षकों में परस्पर सौहार्द होगा तो शिक्षा स्तर और शैक्षणिक माहौल पर निश्चित रूप से सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। विभाग को ऐसा वातावरण तैयार करने की कोशिश करनी चाहिए जिसमें शिक्षकों में खेमेबंदी की गुंजाइश ही न बचे। रेशनेलाइजेशन के सभी पहलुओं पर पुन: विचार किया जाना चाहिए। इसे तार्किक और व्यावहारिक रूप दिए जाने की आवश्यकता है। सुनिश्चित किया जाए कि इससे शिक्षा क्षेत्र में अराजकता न फैले। शिक्षा विभाग अपनी प्रयोगधर्मिता के लिए अक्सर विवादों में रहा है। अनेक उदाहरण सामने हैं जिनसे पता चलता है कि विभाग में स्थिति सहज-सामान्य नहीं है। djedtrl
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