नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के चलते शिक्षा निदेशालय ने
करीब 300 छोटे निजी स्कूलों को मान्यता प्रदान करने से इन्कार कर दिया है।
31 मार्च के बाद इन स्कूलों में पढ़ाई नहीं हो पाएगी। निदेशालय के निर्णय
का विरोध कर रहे स्कूल संगठनों का कहना है कि इससे हजारों बच्चों को भविष्य
संकट में पड़ सकता है। जिन 300 स्कूलों को मान्यता देने से इन्कार किया
गया है, उनमें सबसे ज्यादा 157 स्कूल उत्तरी व पूर्वी दिल्ली के हैं। सबसे
कम स्कूल नई दिल्ली क्षेत्र के हैं। शिक्षा निदेशालय की ओर से की जा रही इस
कार्रवाई का आधार दिल्ली उच्च न्यायालय का वह आदेश है, जिसमें खतरनाक
भवनों और निर्धारित जगह से कम में चल रहे स्कूलों को मान्यता न देने और बंद
किए जाने की बात की गई है। इस आदेश के अंतर्गत पहले भवन की मजबूती संबंधी
प्रमाणपत्र पेश करने पर करीब 800 स्कूलों को प्रोविजन आधार पर मान्यता भी
दी गई है।
शिक्षा निदेशालय की ओर से 300 स्कूलों को बंद करने के लिए अब
प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इसके तहत सरकारी स्कूलों के प्रमुखों और स्कूल
प्रबंधन समितियों के माध्यम से इस बात की पड़ताल की जा रही है कि यदि
स्कूलों को बंद किया जाता है तो यहां पढ़ रहे बच्चों को कैसे और किन
स्कूलों में स्थानांतरित किया जा सकता है। दिल्ली स्टेट पब्लिक स्कूल
मैनेजमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष आरसी जैन का कहना है कि न्यायालय के आदेश की
आड़ में अनावश्यक रूप से छोटे स्कूलों को निशाना बनाया जा रहा है।
प्रभावित होने वाले स्कूलों में ऐसे स्कूलों की संख्या अच्छी-खासी है, जो
भवन की मजबूती संबंधी प्रमाणपत्र देने की औपचारिकता पूरी कर चुके हैं। मुङो
जो जानकारी मिली है, उसके मुताबिक कार्रवाई उन स्कूलों पर हो रही है जो
निदेशालय की ओर से निर्धारित जमीन संबंधी अनिवार्यता को पूरा नहीं करते
हैं। उन्होंने कहा कि ये वे स्कूल हैं, जो पुनर्वास कॉलोनियों में 50 से
150 गज के प्लॉट पर बने स्कूल में चल रहे हैं, जबकि सरकार कहती है कि स्कूल
चलाने के लिए कम से कम 200 गज जमीन जरूरी है। इस विषय में नेशनल
इंडीपेंडेट स्कूल्स एलायंस (निसा) के अमित चंद्रा कहते हैं कि जहां तक बात
स्कूलों की गुणवत्ता के निर्धारण की है तो सरकार को सबसे अधिक महत्व
पढ़ाई-लिखाई पर देना चाहिए। शिक्षा निदेशालय को अपने निर्णय पर पुनर्विचार
करना चाहिए। dj
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