शिक्षा
विभाग की चिंता यह है कि बहुत से ऐसे स्कूल है, जहां बच्चों की संख्या बेहद
कम है। पिछले साल पांचवीं में 2,04,637 छात्रों ने दाखिला लिया था, लेकिन
इस वर्ष छठी कक्षा में 1,40,089 छात्रों ने एडमिशन लिया। अब भी करीब 64
हजार 548 छात्र स्कूल से बाहर है। आठवीं में 2,09,412 छात्रों का दाखिला
था, लेकिन इस वर्ष नौंवी में 1,68,626 छात्रों ने ही प्रवेश लिया। करीब 40
हजार 786 छात्र ड्राप आउट है। समस्या यह है कि बच्चे स्कूल आना ही नहीं चाह
रहे हैं।
क्या इस स्थिति में बदलाव हो सकता है
कुछ ऐसे सरकारी स्कूल हंै, जहां दाखिले के लिए आज भी लाइन लग
रही है। लेकिन यह गिनती के स्कूल हैं। शिक्षा का स्तर तेजी से गिर रहा है।
प्रयोग तो खूब हो रहे हैं, लेकिन इनका परिणाम क्या है? इसके लिए किसकी
जवाबदेही है। सबसे पहले तो शिक्षकों की जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए।
शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार प्रदेश में सबसे ज्यादा कर्मचारी इसी
विभाग से हैं। इसके बाद भी शिक्षा का स्तर सुधर रहा, सरकारी स्कूल का।
हालात में बदलाव के लिए सरकारी स्कूल को प्रोफेशनल तरीके से तैयार करना
होगा। सरकारी स्कूल की पूरी व्यवस्था ही बदलनी होगी। टीचर का टारगेट बच्चों
को दाखिले की बजाय शिक्षा का स्तर करना होगा। एक बार अच्छे रिजल्ट आने
लगेंगे तो बच्चे तो खूद खूद स्कूल में आना शुरू कर देंगे।
ड्राप आउट रोकने को यह उठाए गए कदम
- बड़े बच्चे घरों में जाएंगे और अभिभावकों को स्कूल की खासियत बता कर उन्हें प्रेरित करेंगे कि वे बच्चों को स्कूल भेजें।
- पंच और सरपंच भी अभिभावकों के सामने मीटिंग करेंगे।
- जो पंचायत शत-प्रतिशत दाखिला कराएगी, उसे सम्मानित किया जाएगा।
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