वह रोज हसरत भरी निगाहों से ट्रेन को देखते। उसमें बैठने के ख्वाब सजाते।
अखबार बांटते। घरवालों की मदद करते। मौलवी, पादरी और पंडित का संगम देखते।
कभी उनके टीचर ब्राह्मण रहे, कभी पादरी तो कभी मौलवी। पांच भाई-बहनों का
परिवार था। लेकिन उन्हें अपनी परिस्थितियों से शिकवा नहीं था। घर में
आर्थिक तंगी जरूर थी, लेकिन प्यार भरपूर। मां के लाडले थे। सभी धर्मों का
आदर करना तो जैसे बचपन से ही उनमें भर गया था। जानते हो बच्चो हम किसकी बात
कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं महान वैज्ञानिक एवं पूर्व राष्ट्रपति डॉ
एपीजे अब्दुल कलाम की। वह व्यक्ति सचमुच अद्भुत थे। दक्षिण भारत के सुदूर
रामेश्वरम में एक मछुआरे परिवार में जन्मे। पिता मौलवी थे। साथ-साथ हिंदू
धर्म के श्रद्धालुओं को नाव से मंदिर भी ले जाते थे। कलाम के बारे में
बच्चो तुमने बहुत कुछ सुना होगा, पढ़ा होगा। वह घरवालों की बड़ी मदद करते
थे। उनकी मां भी उनका बड़ा ध्यान रखती थी। आज बच्चो हम आपको बताते हैं
अब्दुल कलाम के बचपन की एक ऐसी घटना के बारे में जिसने कलाम साहब के जीवन
को एक नयी रोशनी दी। घटना बहुत छोटी सी है, लेकिन उसका महत्व बहुत बड़ा है।
दरअसल बात उन दिनों की है जब बालक अब्दुल कलाम पांचवीं कक्षा में थे। वह
सुबह रेलवे स्टेशन से अखबार लेकर आसपास बांटते थे।
पढ़ने जाते थे। जरूरत पड़ने पर पिताजी का भी हाथ बंटाते। दिन ऐसे ही निकल
जाता। कलाम पढ़ना चाहते थे। एक दिन उनकी मां ने उनके लिए एक लैंप बना दिया।
मां ने लैंप बनाया और रात होने पर उसे जलाकर एक कोने में रख दिया। फिर
उन्होंने कलाम से कहा, ‘बेटा तुम बता रहे थे कि पढ़ाई का कुछ काम रह जाता
है। तुम इस लैंप की रोशनी में कुछ देर पढ़ सकते हो।’ कलाम कुछ बोलते इससे
पहले ही उनकी मां फिर बोल पड़ीं, ‘बेटा देखो इस दीये के ठीक नीचे अंधेरा
है, लेकिन चारों तरफ उजाला ही उजाला। इसलिए हमेशा ऐसा काम करो कि खुद के
लिए कुछ हो न हो पर तुम्हारी समाज में कोई बुराई न करे।’ बस उस घटना ने
कलाम के जीवन में आश्चर्यजनक बदलाव कर दिया। वह रोज रात दो-तीन घंटे उस
लैंप की रोशनी में पढ़ते। पढ़ते-पढ़ते कभी-कभी उनका ध्यान ‘चिराग तले
अंधेरा’ पर पड़ जाता। बाद में जब कलाम रामेश्वरम से बाहर निकले। वैज्ञानिक
बने। लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ीं। वह हमेशा इस घटना को याद करते रहते।
बच्चो! शिकायत करना तो बेहद आसान है। लेकिन छोटी-छोटी चीजों में खुशियां
ढूंढ़ने से जीवन में तरक्की मिलती है और मानसिक सुकून भी। एपीजे
अब्दुल कलाम अपनी माता की इस लैंप वाली बात को कभी नहीं भूले। इससे
उन्होंने प्रेरणा ली और वह महान शख्स एक दिन भारत का राष्ट्रपति बना। कलाम साहब का पूरा नाम था अबुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम।
वह चार दशकों तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय
अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख रहे। वह भारतीय परमाणु परीक्षण
के अग्रेता रहे। उन्होंने कई स्वदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण में महती
भूमिका निभाई। वह वर्ष 2002 में भारत के राष्ट्रपति चुने गए। राष्ट्रपति
रहते हुए भी उन्होंने कई ऐसे काम किए जो मील का पत्थर साबित हुए। वह बच्चों
से कहते देश को सबसे पहले मानो। पांच वर्ष बाद वह शिक्षा, लेखन और
सार्वजनिक सेवा में फिर लौट गये थे। अपने जीवन की अंतिम घड़ी तक वह अध्यापन
के काम से जुड़े रहे। कलाम एक चीज कहते थे कि सीखने की ललक हमेशा मन में
रखनी चाहिए। दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए। उन्होंने कई किताबें भी
लिखीं और उनके कई व्याख्यान आज कॉलेज के विद्यार्थियों के कोर्स का हिस्सा
हैं।
प्रस्तुति : केवल तिवारी
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