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Wednesday, 19 March 2014

दावा है, करोड़ों खर्च कर शिक्षा स्तर सुधरेगा

** मास्टर, लेक्चरर को पेपर लेने के लिए देना होगा अलग मेहनताना, सर्वे से समय भी बर्बाद होगा 
कैथल : प्राइमरी स्कूलों में कक्षा तीसरी और पांचवीं के बच्चों के शिक्षा स्तर को सुधारने के लिए शिक्षा विभाग करोड़ों रुपए खर्च कर रहा है। इसके बावजूद किताबों के अभाव में उचित परिणाम आने की उम्मीद काफी कम लग रही है। अध्यापक संघ द्वारा इस टेस्ट का विरोध जिला स्तर पर किया जा रहा है। संघ का कहना है कि पिछली बार भी आठ माह बच्चों को पुस्तकें नहीं मिली थी। इस सर्वे का परिणाम भी शून्य ही रहेगा। 
हरियाणा अध्यापक संघ का कहना है कि बच्चों का टेस्ट किसी प्राइवेट एजेंसी से कराया जा रहा है। शिक्षा विभाग ने आज तक न तो प्राथमिक शिक्षकों और न ही बच्चों को कोई निर्देश जारी किया है। टेस्ट के लिए क्या प्रणाली अपनाई जाएगी। इसके बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी गई। हरियाणा अध्यापक संघ के सचिव सतबीर गोयत ने कहा कि शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूलों को प्रयोगशाला बना दिया है। शिक्षा विभाग में आए दिन कोई न कोई नहीं नीति का प्रयोग किया जाने लगा है। सरकारी स्कूलों में पढ़ाई कम हो रही है। प्रयोग ज्यादा हो रहे हैं। ऐसे प्रयोगों को असर बच्चों पर भी पढ़ रहा है। 
सर्वे के बाद बनेगी पॉलिसी 
डिप्टी डीईओ शमशेर सिंह सिरोही ने कहा कि शिक्षा विभाग द्वारा प्राइमरी स्कूलों में शिक्षा स्तर सुधारने के लिए एक सर्वे किया जा रहा है। इसके बाद ही नई पॉलिसी बनेगी। इसके लिए अध्यापकों को विरोध करने के स्थान पर गिर रहे शिक्षा स्तर की तरफ ध्यान देना चाहिए। अगर सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधरेगा तो बच्चों की संख्या भी बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले एक प्राइवेट एजेंसी ने सर्वे किया था। सर्वे के अनुसार पांचवीं के बच्चे को दूसरी कक्षा के बच्चे जितना ज्ञान भी नहीं है। अब इस सर्वे में ही विषय में बच्चों का मानसिक स्तर जांचा जाएगा।   db


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