तमाम सरकारी योजनाओं के बावजूद सरकारी स्कूलों में अव्यवस्थाओं का आलम है। स्कूल में न तो शिक्षक हैं और न ही बच्चों के बैठने के लिए पर्याप्त मात्र में बैंच व कमरे। साढ़े आठ करोड़ खर्च करने के बावजूद चालीस फीसद स्कूलों में एजुसेट खराब पड़े हैं। बीते दस वर्षो की अगर बात करें तो सरकारी स्कूलों में आजतक बच्चों को शिक्षा का अधिकार नहीं मिल पाया है। वहीं, धारा 134ए नियम की हकीकत से हर कोई वाकिफ है। हिसार में छह हजार गरीब विद्यार्थी प्राइवेट स्कूलों में दाखिला से वंचित रह गए। इसके अतिरिक्त कई गांवों में बच्चों की कमी के कारण स्कूलों को बंद करना पड़ा। वहीं, अब बच्चों व शिक्षकों की कमी के कारण स्कूलों को मर्ज करने की तैयारियां चल रही है।
इसमें दोराय नहीं कि पहली कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा तक अव्यवस्थाओं का बोलबाला है। जहां दोहरी शिक्षा नीतियों के कारण सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर गर्त में है। वहीं शिक्षा विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों और शिक्षकों तक सरकारी शिक्षा पर भरोसा नहीं है।
ग्रामीण स्कूलों की हालत खस्ता
शहर के मुकाबले ग्रामीण स्कूलों के हालत खस्ता है। वहां न तो पीने के पानी की सुविधा है और न ही बिजली। बैठने के लिए बैंच नहीं और सिर पर पंखा नहीं। कंडम भवन और टूटी खिड़कियां। ऊपर से शिक्षकों की कमी। हालांकि अब जाकर शिक्षा विभाग ने स्कूल सेवा नियमों में बदलाव कर पांच साल तक नवनियुक्त शिक्षकों को ग्रामीण स्कूलों में पढ़ाने की शर्त रखी है।
दस साल में नहीं सुधरे हालात
एजुसेट : स्कूलों में खराब पड़े एजुसेट। डेढ़ साल से बैटरी की डिमांड भेजकर विभाग थक चुका है लेकिन आला अधिकारी हैं कि उनके ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ रहा। चार सौ स्कूलों में बैटरी नहीं होने के कारण एजुसेट धूल फांक रहे हैं।
बजट : स्कूलों में समय पर बजट जारी न होने के कारण मूलभूत सुविधाओं की दरकार है। शिक्षा विभाग की लचर कार्यप्रणाली के कारण होनहार विद्यार्थियों को दो से तीन माह देरी से छात्रवृत्ति मिलती है।
विवाद: मास्टर व प्राध्यापक नौवीं-दसवीं के वर्कलोड पर आपस में उलझते रहे। अब प्राध्यापकों को छठी कक्षा तक का वर्कलोड देने पर विवाद खड़ा हो गया है। दोहरी शिक्षा नीतियों से पार नहीं पा सका शिक्षा विभाग।
रिक्तियां : मौलिक स्कूलों में शिक्षकों के दो सौ और नौवीं से 12वीं तक करीब तीन सौ प्राध्यापकों की कमी है। इसके अलावा टीजीटी से पीजीटी पदों पर ढाई सौ रिक्त पदों पर भर्ती न होना।
कंप्यूटर : स्कूलों में कंप्यूटर लैब स्थापित करने के बाद शिक्षकों की भर्ती नहीं हुई। अब भर्ती हुई तो उन्हें वेतन नहीं मिला। ऐसे में विद्यार्थी कंप्यूटर शिक्षा से वंचित हैं।
अनुभवहीन : शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षकों की भर्ती की जा रही है लेकिन अनुभवहीन शिक्षकों की भर्ती के कारण शिक्षा गर्त में जा रही है। यही वजह है कि बोर्ड परीक्षा में सरकारी की बजाए प्राइवेट स्कूल बाजी मार जाते हैं। कई शिक्षक ऐसे हैं जिन्हें अंग्रेजी में जनवरी भी नहीं लिखना आता। djhsr
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