स्कूलों में शुरू मासिक परीक्षा को शिक्षक सिरदर्द के रूप में देख रहे हैं। शिक्षकों का कहना है कि अब बच्चों को पढ़ाने के लिए समय ही नहीं मिलेगा। वे समझ नहीं पा रहे कि बच्चों की पढ़ाई कब करवाएंगे। अब दस दिन तो सिर्फ परीक्षा में बीत जाएंगे। कुछ अवकाश आ जाते हैं। ऐसे में मुश्किल से पंद्रह दिन पढ़ाई के लिए बचेंगे। ऐसे में सवाल ये है कि बच्चों का सिलेबस पूरा कैसे करवाया जाएगा।
शिक्षा विभाग ने पहली से बारहवीं कक्षा तक मासिक परीक्षा जरुरी कर दी है। शिक्षकों का कहना है कि एक सप्ताह तो परीक्षा में बीत जाएगा। इस बीच एक अवकाश आ जाता है। दो दिन पेपर चेक करने में बीत जाते हैं। इस तरह लगभग दस दिन सिर्फ परीक्षा में बीत जाएंगे। महीने में चार रविवार आते हैं। दो या तीन अन्य अवकाश आ जाते हैं। उस स्थिति में पंद्रह दिन बचते हैं।
पंद्रह दिन सिलेबस पूरा करवाने के लिए काफी नहीं होते। कई महीने ऐसे भी आते हैं, जब चार पांच छुट्टियां लगातार आती हैं। उस हिसाब से पढ़ाने के लिए दस दिन भी नहीं बचते।
अन्य कार्यक्रम भी जरूरी
परीक्षा के अलावा समय समय पर स्कूलों में अन्य सांस्कृतिक व जागरूकता कार्यक्रम भी करवाने पड़ते हैं। रैलियां व प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती हैं। खेल प्रतियोगिताएं भी करवानी पड़ती हैं। उनके लिए भी अलग से समय चाहिए। ऐसे कार्यक्रमों में शिक्षकों का काफी समय बर्बाद होता है। कई कार्यक्रम ऐसे हैं, जो समय पर न हो तो कार्रवाई भी हो सकती है। इसके अलावा मिड डे मील अपने आप में बड़ी जिम्मेदारी है। उस पर भी ध्यान देना पड़ता है।
पढ़ाई पर विपरीत असर पड़ेगा: टुटेजा
राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ के जिला प्रधान विकास टुटेजा का कहना है कि विभाग की तरफ से आदेश पर आदेश आते हैं। हर रोज नए नए कार्यक्रम करवाने पड़ते हैं। जमीन स्तर की दिक्कतें शायद शिक्षकों से ज्यादा अधिकारी नहीं जानते। मासिक परीक्षा से पढ़ाई पर विपरीत असर पड़ेगा।
इतना मुश्किल काम नहीं: डीईईओ
जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी डॉ. यज्ञदत्त वर्मा का कहना है कि मासिक परीक्षा कोई इतना मुश्किल काम नहीं है। पेपर छपे हुए मिलेंगे। ऑनलाइन करने का काम सूचना प्रबंधकों को करना है। इसमें शिक्षकों को कैसे परेशानी। djftbd
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