भिवानी : बस्ते का बोझ कम करने के मकसद से शुरू किया गया सेमेस्टर सिस्टम अपने ही बोझ से दम तोड़ गया। बच्चों की नंबरों से झोली भरने वाले इस सिस्टम को खत्म करने की राज्य सरकार की घोषणा के बाद शिक्षक भी खुश हैं और शिक्षाविद् भी। यहां यह बात हैरान करने वाली है कि शिक्षक-शिक्षाविदें के विरोध के बावजूद इस सिस्टम को राज्य के नीति-नियंता नौ साल से खींचते रहे।
वर्ष 2006 में हरियाणा ने देश में पहली बार अपने यहां सेमेस्टर सिस्टम शुरू किया था। तब राज्य ने देश में खूब वाहवाही बटोरी, बल्कि और राज्यों को भी हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड ने ऐसा करने के लिए ‘प्रेरित’ करने की कोशिश की। शुरू के दो वर्षों में पहला सेमेस्टर पूरी तरह ऑब्जेक्टिव रखा गया। इसका ‘साइड इफेक्ट’ यह रहा है कि पहले सेमेस्टर में लगभग हर बच्चा मेधावी साबित हुआ और दूसरे सेमेस्टर में फिसड्डी। आलोचना झेलने के बाद ऑब्जेक्टिव फॉरमेट बंद कर दिया और दोनों सेमेस्टर कर दिए।
शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन (1979 व 1987-1989) रहे डा. राजा राम का मानना है कि इंटरनल असेसमेंट के दुरुपयोग व कुछ अन्य कमियों ने सेमेस्टर सिस्टम को ऐसा बना दिया कि बच्चे व टीचर दोनों पढ़ाई से विमुख होने लगे। इंटरनल असेसमेंट में 40 में से 40 अंक सामान्य बात रही। कटु सचाई यह है कि नौ साल इस सेमेस्टर सिस्टम की मौजूदगी के बावजूद इसके लिए न टीचर तैयार हो पाए और न ही बच्चे। बहरहाल, सरकार ने इसे खत्म किया है तो यह फैसला हरियाणा के लिए हेल्दी है।
राज्य के सबसे बड़े अध्यापक संगठनों में से एक हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष मास्टर वजीर सिंह ने कहा कि सेमेस्टर सिस्टम की सबसे बड़ी खामी यह थी कि पूरे साल में 46 दिन परीक्षा और उत्तरपुस्तिका की जांच में बर्बाद हो जाते थे। पढ़ाई के लिहाज से यह इतना बड़ा नुकसान था कि इसकी भरपाई नहीं हो पाती थी। यह सिस्टम हरियाणा की परिस्थितियों के अनुरूप नहीं था। जिस दिन यह सिस्टम लागू हुआ था, उसी दिन से संघ इसका विरोध कर रहा था। अब सरकार ने इसे खत्म करने की इच्छा जताई है, यह स्वागत योग्य है।
ये रही बड़ी खामियां
• नहीं बन पा रहा था निरंतर पढ़ाई का माहौल
• सेमेस्टर सिस्टम लाने से पहले नहीं की गई शिक्षक-शिक्षाविदें से रायशुमारी
• परीक्षा और उत्तर पुस्तिका अंकन की वजह से पढ़ाई बाधित होने की समस्या का तोड़ नहीं खोजा जा सका
• शिक्षकों को नहीं दी गई पर्याप्त ट्रेनिंग au
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