चंडीगढ़: प्रदेश के शिक्षा विभाग में अपने गृह जिले की बजाय अन्य जिलों में कार्यरत जेबीटी शिक्षकों की अंतर जिला तबादला नीति में गैस्ट टीचर्स के पदों को खाली न मानने को ले कर शुक्रवार को शिक्षा विभाग फिर से कटघरे में खड़ा नजर आया। दरअसल जेबीटी शिक्षकों की अंतर जिला तबादला पॉलिसी में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं था कि तबादलों पर विचार करते गैस्ट टीचर्स के पदों को रिक्त नहीं माना जायेगा। लेकिन विभाग ने बाद में गैस्ट टीचर्स के दबाव में उनके पदों को रिक्त नहीं मान कर विशुद्ध रूप से खाली पदों पर ही तबादलों की 1588 शिक्षकों की सूचि जारी कर दी। ऐसे में रोहतक निवासी राकेश ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर गैस्ट टीचर्स के पदों को रिक्त मान कर उसका तबादला करने की मांग की।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता जगबीर मलिक ने बेंच को बताया कि याचिकाकर्ता से उसकी नियुक्ति के समय वर्ष 2011 में कॉउंसलिंग के दौरान जिलों की पसन्द का ऑप्शन माँगा गया था जिस उसने रोहतक, सोनीपत व झज्जर जिलों में नियुक्ति का ऑप्शन भरा था लेकिन विभाग ने गैस्ट टीचर्स को न हटा कर उसको अम्बाला में नियुक्ति दे दी थी। वर्ष 2015 में सरकार द्वारा जारी इंटर डिस्टिक ट्रांसफर पॉलिसी के तहत याचिकाकर्ता ने पॉलिसी के क्लॉज 3 (vi) के तहत रोहतक में तबादले के लिए आवेदन किया था क्योंकि उसकी पत्नी इंडीयन आर्मी में गर्ल्स केडेट इंस्ट्रक्टर के पद पर रोहतक में कार्यरत है और उनका 8 साल का लड़का अस्थमा से पीड़ित है। तबादला सूचि में याचिकाकर्ता का तबादला ये कह कर नहीं किया गया कि रोहतक में कोई पद रिक्त नहीं है जबकि रोहतक में गैस्ट टीचर्स जेबीटी पदों पर कार्यरत है। बहस में बताया गया कि गैस्ट टीचर्स की नियुक्ति एक स्टॉप गेप अरेंजमेंट है और उनके पदों को रिक्त नहीं मानना गलत व मनमानीपूर्ण है। जस्टिस दीपक सिब्बल क0ी बेंच ने बहस से प्रथम दृष्टया सहमत होते हुए शिक्षा विभाग की सचिव, मौलिक शिक्षा निदेशक सहित अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। pk
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