अंबाला : प्रदेश के किसी भी सरकारी स्कूल में अभी तक आठवीं तक के
विद्यार्थियों को मिलने वाली किताबें नहीं पहुंची हैं। राज्य प्रोजेक्ट
अधिकारी ने इसके लिए कक्षा तत्परता कार्यक्रम का बहाना बनाया है। स्पष्ट कर
दिया है कि किताबें आने की अभी कोई उम्मीद नहीं है। अलबत्ता करीब डेढ़ माह
तक सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले आठवीं तक के विद्यार्थियों को
ग्रीष्मकालीन छुट्टियों तक बिना किताबों के ही पढ़ाई करनी होगी। कहा कि जो
किताबें जरूरी थी वह स्कूलों में भेजी जा चुकी हैं। किताबें नहीं आने से
सबसे ज्यादा असर प्रदेश के 9 हजार 113 प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले
विद्यार्थियों पर पड़ेगा। करीब 5 हजार मिडिल, हाई और सीनियर सेकेंडरी
स्कूलों में पढ़ने वाले आठवीं तक के विद्यार्थी भी प्रभावित होंगे।
वर्ष
2013 में प्रदेश में किताबों के संकट के चलते शिक्षा विभाग ने क्लास
रेडीनेंस प्रोग्राम शुरू किया था। उस समय भी स्कूलों में किताबें समय पर
नहीं पहुंची थी। स्कूल संचालकों की दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए और
अभिभावकों के आक्रोश को शांत करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र
सिंह हुड्डा ने कक्षा तत्परता कार्यक्रम की शुरुआत की। तब से लेकर हर साल
इस कार्यक्रम को स्कूलों में चलाया जाता है। कार्यक्रम 1 अप्रैल से 22 मई
तक प्रदेश के हर स्कूल में चलता है।
जाट आरक्षण के चलते नहीं पहुंचे
कागजात :
जाट आरक्षण को समाप्त हुए करीब डेढ़ माह बीत चुका है लेकिन इसका
असर अभी भी दिखाई दे रहा है। रेल, सड़क व प्रशासन के साथ अब जाट आरक्षण का
असर शिक्षा विभाग पर पड़ता नजर आ रहा है। यही कारण है कि प्रदेशभर के किसी
भी सरकारी स्कूल में अभी तक आठवीं तक के विद्यार्थियों को मिलने वाली
किताबें नहीं पहुंची है। जिन कंपनियों को सरकारी स्कूलों की पुस्तकें
पहुंचाने का टेंडर दिया गया है उन्होंने जाट आंदोलन को किताबें नहीं
पहुंचने का सबसे बड़ा कारण बताया है।
"अभी तो स्कूलों में डेढ़ महीने तक सीआरपी चलेगा। उसके लिए जो जरूरी है वह
किताबें भेजी जा चुकी हैं। तब तक आठवीं के विद्यार्थियों को मिलने वाली
किताबें भी स्कूलों में पहुंच जाएंगी।"-- आलोक वर्मा, निदेशक, स्टेट प्रोजेक्ट,
पंचकूला।
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