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Monday, 3 April 2017

लर्निंग V/s अंकों की दौड़ : मार्क्स की होड़ 50%बढ़ी,सीखने के मौके 75%घटे,बच्चे बनेंगे रट्‌टू तोता

** पहले 60% अंकों के लिए होती थी परीक्षा, अब 90% के लिए होगी। यानी अतिरिक्त 30 अंकों के लिए 50% ज्यादा किताबी कोर्स। 
** पहले 40% मार्क्स सिर्फ एक्टिविटी बेस्ड नॉलेज के लिए होते थे, अब सिर्फ 10% अंक। यानी रिपोर्ट कार्ड में इनका वेटेज 75% घटा। 
** बच्चों को परखने के लिए फिरआया 8 साल पुराना फॉर्मूला 
** शिक्षाविद्बोले-यह पीछे लौटने का फसला 

** सीखना स्वाभाविक प्रक्रिया, बच्चे जब बोलना सीखते हैं क्या तब भी टेस्ट देते हैं?
** सबसे बड़े स्कूल तक बोर्ड से सहमत नहीं 
नई दिल्ली/ग्वालियर/|जयपुर/इंदौर/मुंबई: कक्षा6 से 9वीं के लिए सीबीएसई ने असेसमेंट, एग्जाम और रिपोर्ट कार्ड का पैटर्न एक जैसा कर दिया है। लर्निंग से ज्यादा लिखित परीक्षा और अंकों का महत्व बढ़ा दिया है। सवाल उठ रहे हैं कि सीबीएसई ने जिस सीसीई पैटर्न को आठ साल चलाया, उसे अचानक क्यों खत्म कर दिया। गौरतलब है कि अब तक बच्चों को 60% अंकों के लिए ही परीक्षा देनी होती थी। 40% अंक उन्हें एक्टिविटीज के जरिए मिलते थे, अब बच्चों को 90% अंक टेस्ट के जरिए ही मिलेंगे। 
यानी 30 अतिरिक्त अंकों के लिए मार्क्स की होड़ और 50% बढ़ जाएगी। नए पैटर्न में एक्टिविटीज का वेटेज 40% से घटाकर सिर्फ 10% कर दिया है। देशभर के शिक्षावि्द इस फैसले को रिवर्स गियर बता रहे हैं। कहा जा रहा है कि इससे सिर्फ बच्चे किताबी कीड़े बनेंगे, बल्कि अंकों की दौड़ भी हावी हो जाएगी। 
एग्जाम के पैटर्न पर ही नहीं, रिपोर्ट कार्ड के प्रोफार्मा पर भी सवाल उठ रहे हैं। रिपोर्ट कार्ड में अब सिर्फ ग्रेड नहीं होंगे। मार्क्स भी लिखे जाएंगे। ऐसे में ग्रेडिंग सिस्टम का कोई महत्व ही नहीं रह जाएगा। 

पुराना तरीका इसलिए अच्छा था 
क्योंकि :
  • सीसीई पैटर्न में स्कॉलेस्टिक एक्टिविटीज का वेटेज ज्यादा होने से छात्रों की रुचि का पता लगाना आसान था। इससे उन्हें आगे विषयों के चुनाव में आसानी होती थी। 
  • हर टर्म में सिलेबस का एक निर्धारित हिस्सा ही तैयार करना होता था। कमजोर छात्रों के लिए लर्निंग आसान थी। स्कॉलेस्टिक और एक्स्ट्रा-कॅरिकुलर एक्टिविटीज के ज्यादा महत्व से छात्रों के लिए लाइफ  स्किल्स सीखना, थिंकिंग एबिलिटी बढ़ाना आसान था। 

सिर्फ 9वीं के लिए करते बदलाव -प्रमोदशर्मा 
डायरेक्टर, जेनेसिसग्लोबल 
(सीआईएससीई, आईबी, कैंब्रिज से संबद्ध)
यह सीबीएसईका ओवर रिएक्शन है। बदलाव करना था, तो सिर्फ 9वीं के लिए करते। छठी से आठवीं तक पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए कि बच्चों को लर्निंग में मजा आए। सीसीई पैटर्न जिसमें बच्चों को सिर्फ किताबी ज्ञान के नहीं, बल्कि व्यावहारिक ज्ञान के भी अंक मिलते थे, वह इसलिए विफल हुआ-क्योंकि ठीक से लागू ही नहीं किया। 
दुनियाभर में चल रहा ग्रेड पैटर्न-अभिमन्यु बसु
एकेड. प्रोजेक्ट डायरेक्टर. अंबानीस्कूल
(अंबानी स्कूल सीआईएससीई बोर्ड से संबद्ध है)
सिर्फ ग्रेडसिस्टम ज्यादा बेहतर है। क्योंकि वैसे भी ग्रेड उसी अनुसार दिए जाते हैं कि कोई बच्चा कितना सीख रहा है। अच्छी बात यह है कि इससे एक ही क्लास के सभी बच्चे टॉपर भी हो सकते हैं। अमेरिका जैसे देशों में ग्रेड सिस्टम ही फॉलो किया जाता है। एग्जाम का पैटर्न ऐसा होना चाहिए कि बच्चों का सही मूल्यांकन हो सके। 
यह रटकर याद रखने का पैटर्न -मैथ्यूरैगेट 
हेडमास्टर. दूनस्कूल 
(दून सीआईएससीई, आईएससी, आईबी से संबद्ध।)
यह सिर्फरट-रटकर विषयों को याद रखने की क्षमताओं का टेस्ट पैटर्न है। जीवन में ऐसा कहीं नहीं होता। जिन देशों का एजुकेशन सिस्टम बेहतर माना जाता है, वहां चौथी, कहीं-कहीं आठवीं तक परीक्षा ही नहीं होती। जब हम चलना सीखते हैं, बोलना सीखते हैं, तो उसके बाद क्या किसी तरह का टेस्ट देते हैं? 
यह बोर्ड का रिवर्स गियर -डॉ.माधव देव 
प्रिंसिपल, सिंधियास्कूल
(सिंधिया स्कूल सीबीएसई बोर्ड से संबद्ध है।)
यह रिवर्सगियर में जाने जैसा है। एग्जाम से लर्निंग कुछ समय की होती है। यह तो बच्चों पर प्रेशर बनाए रखने का हथियार है। लर्निंग निश्चित तौर पर प्रभावित होगी। सीसीई पैटर्न अच्छा था, पर टीचर्स प्रशिक्षित नहीं थे। आज नए दौर में क्रिएटिविटी पर जोर है। अंकांे से ज्यादा लर्निंग जरूरी है। ऐसे में यह फैसला हमें पीछे की ओर धकेलेगा। 















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