(सीआईएससीई, आईबी, कैंब्रिज से संबद्ध) यह सीबीएसईका ओवर रिएक्शन है। बदलाव करना था, तो सिर्फ 9वीं के लिए करते। छठी से आठवीं तक पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए कि बच्चों को लर्निंग में मजा आए। सीसीई पैटर्न जिसमें बच्चों को सिर्फ किताबी ज्ञान के नहीं, बल्कि व्यावहारिक ज्ञान के भी अंक मिलते थे, वह इसलिए विफल हुआ-क्योंकि ठीक से लागू ही नहीं किया।
दुनियाभर में चल रहा ग्रेड पैटर्न-अभिमन्यु बसु
एकेड. प्रोजेक्ट डायरेक्टर. अंबानीस्कूल
(अंबानी स्कूल सीआईएससीई बोर्ड से संबद्ध है) सिर्फ ग्रेडसिस्टम ज्यादा बेहतर है। क्योंकि वैसे भी ग्रेड उसी अनुसार दिए जाते हैं कि कोई बच्चा कितना सीख रहा है। अच्छी बात यह है कि इससे एक ही क्लास के सभी बच्चे टॉपर भी हो सकते हैं। अमेरिका जैसे देशों में ग्रेड सिस्टम ही फॉलो किया जाता है। एग्जाम का पैटर्न ऐसा होना चाहिए कि बच्चों का सही मूल्यांकन हो सके।
यह रटकर याद रखने का पैटर्न -मैथ्यूरैगेट
हेडमास्टर. दूनस्कूल
(दून सीआईएससीई, आईएससी, आईबी से संबद्ध।) यह सिर्फरट-रटकर विषयों को याद रखने की क्षमताओं का टेस्ट पैटर्न है। जीवन में ऐसा कहीं नहीं होता। जिन देशों का एजुकेशन सिस्टम बेहतर माना जाता है, वहां चौथी, कहीं-कहीं आठवीं तक परीक्षा ही नहीं होती। जब हम चलना सीखते हैं, बोलना सीखते हैं, तो उसके बाद क्या किसी तरह का टेस्ट देते हैं?
यह बोर्ड का रिवर्स गियर -डॉ.माधव देव
प्रिंसिपल, सिंधियास्कूल
(सिंधिया स्कूल सीबीएसई बोर्ड से संबद्ध है।) यह रिवर्सगियर में जाने जैसा है। एग्जाम से लर्निंग कुछ समय की होती है। यह तो बच्चों पर प्रेशर बनाए रखने का हथियार है। लर्निंग निश्चित तौर पर प्रभावित होगी। सीसीई पैटर्न अच्छा था, पर टीचर्स प्रशिक्षित नहीं थे। आज नए दौर में क्रिएटिविटी पर जोर है। अंकांे से ज्यादा लर्निंग जरूरी है। ऐसे में यह फैसला हमें पीछे की ओर धकेलेगा।
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