सिरसा: शिक्षा विभाग के क्लर्क कोर्ट केसों में उलझे हुए हैं। विभाग में न तो अस्थाई लीगल एडवाइजर कमेटी का गठन है और न ही सरकार ने स्थानीय स्तर पर शिक्षा विभाग में कोई अस्सिटेंट डिस्ट्रिक्ट एटार्नी का पद स्वीकृत किया है।
जिला शिक्षा विभाग और जिला मौलिक शिक्षा विभाग में लगभग मेडिकल क्लेम, एसपी, पदोन्नति, एलटीसी जैसे विभिन्न मामलों के लगभग 50 केस पेंडिंग है।
सरकार ने शिक्षा विभाग में कोई एडीए की पद नहीं रखा। दोनों कार्यालयों में कोई लीगल एडवाइजर कमेटी भी गठित नहीं है। ऐसे में दोनों विभागों के कर्मचारी ही कोर्ट केसों की पैरवी करने के कोर्ट में जाते हैं।
वर्तमान में शिक्षा विभाग के सुप्रीम कोर्ट में सीतारानी, कमलेश, बिमला बनाम हरियाणा सरकार के केस चल रहे हैं। कुछ ही दिन पहले जरूरी कागजात देने के लिए डीलिंग हैंड टेक चंद मेहता सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट को जरूरी कागजात देने के लिए गए थे। जब कर्मचारी कोर्ट केस के कागजात जमा कराने के लिए कभी हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाते हैं तो पीछे से विभागीय कामकाज प्रभावित होने के आसार बन जाते हैं। अध्यापकों के फाइलें कर्मचारियों की मेजों पर जमा हो जाती हैं।
यूनियन कर चुकी हैं कई बार मांग
"यूनियन ने कई बाद शिक्षा विभाग के डायरेक्टर से डिमांड की थी कि जिला मुख्यालयों पर विभाग में एडीए का पद स्वीकृत होना चाहिए। लेकिन आज तक उनकी मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। कर्मचारी जब कोर्ट केस की फाइलें लेकर कोर्ट में जाता है तो पीछे से विभागीय कामकाज प्रभावित होता है।"--टेक चंद मेहता, जिला प्रधान, हरियाणा मिनिस्ट्रियल एसोसिएशन।
पद स्वीकृत करना सरकार का अधिकार क्षेत्र
"एडीए की पद स्वीकृत करने का अधिकार सरकार के पास है। स्थानीय स्तर पर शिक्षा अधिकारी के पास कोई अधिकार नहीं है।"-- कुमकुम ग्रोवर, जिला शिक्षा अधिकारी। db
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