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Friday, 18 October 2013

शिक्षा विभाग अपने ही नियम लागू नहीं कर सका

** 15 प्राइमरी स्कूल ऐसे जहां 20 से ऊपर नहीं बच्चों की संख्या
** शिक्षा विभाग अपने ही नियम लागू नहीं कर सका, सिस्टम फेल होने से हर स्कूल में अध्यापक खाली बैठे रहते हैं
कैथल : जिले के 15 प्राइमरी स्कूल ऐसे है जहां बस 20 ही छात्र हैं। इन स्कूलों में एक ऐसा भी स्कूल है जहां अध्यापक, चौकीदार, सफाई कर्मचारी के अलावा स्कूल में कोई विद्यार्थी नहीं है। इन प्राथमिक पाठशालाओं में विद्यार्थियों को मिड-डे मील, मुफ्त वर्दियां, पुस्तकें, कॉपियां और वजीफा का लालच भी नहीं रोक पाया। हर स्कूल में मास्टर साहब तो खाली रहते हैं ही दूसरा स्टाफ भी सुबह आ कर शाम तक बिना कुछ किए वापस लौट जाता है। 
कैथल में देबन खेड़ा, पट्टी डोगर, कालू की गामड़ी, नहर कॉलोनी, करतार पुरा के अलावा पूंडरी, कलायत और राजौंद में भी तीन-तीन स्कूल ऐसे ही हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार अगर किसी स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या 20 से कम है तो ऐसे स्कूल को बंद करके बच्चों को नजदीक के सरकारी स्कूल में शिफ्ट कर दिया जाएगा। 
ऐसे में बंद हुए स्कूल अध्यापकों को जरूरत के अनुसार अन्य स्कूलों में शिफ्ट किया जा सकेगा। ताकि स्कूलों में अध्यापकों की कमी को भी पूरा किया जा सके। यहां तक कि अगर बंद होने वाले स्कूल के नजदीक कोई दूसरा प्राइमरी स्कूल नहीं है तो ऐसे स्कूल के विद्यार्थियों को नजदीक के प्राइवेट स्कूल में भी दाखिल करवाने का प्रावधान है। लेकिन शिक्षा विभाग अभी तक अपने ही नियमों को लागू नहीं कर सका।
            कैथल : करतापुर की प्राथमिक पाठशाला में बच्चों के बैठने लिए फर्नीचर और रखा टीवी।
सरकारी स्कूलों की पढ़ाई पर सवाल 
ज्यादातर प्राइमरी स्कूलों में प्रवासी मजदूरों के बच्चे ही शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में इन परिवारों के बच्चों से ही संख्या संतोष जनक बनी है। दूसरी ओर स्कूल अध्यापक बच्चों की संख्या को बनाए रखने के लिए बच्चों के स्कूल न आने पर भी नाम नहीं काटते। डोगर पट्टी निवासी वासी प्रीतम, सुरेश, हरभजन, संतोष, जनक राज, अमित, प्रभजीत, सुमन, कमलेश, हरिराम, कृष्ण, कमलेश और सुरभि ने कहा कि सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों को सुविधाएं तो मिल रही हैं। लेकिन शिक्षा नहीं। कभी समय पर पुस्तकें स्कूलों में नहीं पहुंच रही। कभी स्कूलों में अध्यापकों की गुटबंदी होने के कारण पढ़ाई में बाधा बन रही है। शिक्षा अधिकारियों को कार्यालय छोड़ फील्ड में जाना होगा। ताकि स्कूलों में शिक्षा के स्तर में सुधार हो सके।
बस चिंता ही जताई जा रही है 
जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी सतीश राणा ने कहा कि उन्होंने ऐसे स्कूलों की लिस्ट बनाकर शिक्षा विभाग के निदेशक को भेज दी है। स्कूल खोलने व बंद कराने का काम निदेशक के अधिकार क्षेत्र में आता है। अध्यापकों को भी कहा जा रहा है कि वे अपने स्कूलों में बच्चों की संख्या को बढ़ाएं। लेकिन जहां बच्चों की संख्या लंबे समय से नहीं बढ़ रही। वह चिंता का विषय है।    db 

       db

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